अगर न नभ में बादल होते निबंध | Agar Na nabh me badal hote essay in Hindi

 

 अगर न नभ में बादल होते निबंध | Agar Na nabh me badal hote essay in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  अगर न नभ में बादल होते निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ की लगभग बहत्तर प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। उसका प्रमुख व्यवसाय कृषि है। इस देश की कृषि पूर्ण रूप से वर्षा पर निर्भर है। हर वर्ष, वर्षाऋतु में नभ में बादल घिर आते हैं और शीतल जलधारा से पृथ्वी की प्यास बुझाते हैं। इसलिए इस कल्पना से ही बहुत भय लगता है कि अगर नभ में बादल न होते, तब क्या होता?


यदि नभ में बादल न होते, तो वर्षा रानी का आगमन रुक जाता। हमें वर्ष में आठ महीने सूर्य की प्रखर किरणों का ताप सहन करना पड़ता। छोटे पेड़, कोमल पौधे, हरी-भरी लताएँ और मखमली घासें सूख जातीं। कुओं का जल-स्तर बहुत नीचे चला जाता, तालाब सख जाते, खेती न हो पाती और वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते धरती की छाती में गहरी दरारें पड जातीं।


हमारे देश में सिंचाई-व्यवस्था का विकास तो जरूर हुआ है, लेकिन सिंचाई के साधन भी वर्षा होने पर ही कारगर सिद्ध होते हैं। यदि नभ में बादल न घिरते, तो वर्षा कहाँ से होती? बेचारे किसान खेत जोतकर वर्षा के आगमन की प्रतीक्षा करते रह जाते। 


वर्षा के अभाव में वे बीज न बो पाते। कुओं और तालाबों में पानी की सतह बहुत नीचे उतर जाती। जल के अभाव में सिंचाई करना बहुत कठिन हो जाता। छोटी-छोटी नदियाँ तो पूरी तरह सूख जाती और बड़ी-बड़ी नदियों में भी जल की कमी हो जाती।


जलाशयों का जल-स्तर गिर जाने से पेय जल का संकट उपस्थित हो जाता। सारी खेती का काम ठप हो जाता और सभी लोग अकाल पड़ जाने की आशंका से व्याकुल हो उठते।


अगर नभ में बादलों की काली घटाएँ न घिरतीं, तो वर्षा के अभाव में खाद्यान्नों का उत्पादन रुक जाता। कृषि-उपजों के भाव आसमान छूने लगते और महँगाई विकराल रूप धारण कर लेती। ग्रामीण क्षेत्रों में जमाखोरों और सूदखोरों की बन आती। छोटे और मध्यम श्रेणी के किसान अपने पशु और खेत कौड़ी के मोल बेचने लगते और कर्ज के बोझ के नीचे दबते चले जाते।


शहरों में महँगाई चरम सीमा पार कर जाती और हड़तालों तथा दंगों का दौर शुरू हो जाता। पेय जल की समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती। सरकार जनता के लिए जल की आपूर्ति करने में असमर्थ हो जाती और लोग नगरों-महानगरों से भागने लगते।


यदि नभ में बादल न होते, तो वर्षा न होने से बड़े-बड़े बाँधों के जलाशयों का जलस्तर अत्यंत नीचे चला जाता और जलविद्युत का उत्पादन बहुत घट जाता। उद्योग-धंधों को विद्युत आपूर्ति कम होने लगती और औद्योगिक उत्पादन में ह्रास आ जाता। कुछ समय बाद उद्योग-धंधे बंद होने लगते और मजदूरों के सिर पर बेकारी की भयानक छाया मँडराने लगती।


सरकार के राजस्व का बड़ा भाग खाद्यान्न आयात करने तथा अकालपीड़ित जनता के लिए राहत कार्य चलाने में ही समाप्त हो जाता और रचनात्मक कार्यों के लिए कुछ भी शेष नहीं बचता। सारी अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती और अकाल के संकट का मुकाबला करने के लिए दूसरे देशों के आगे हाथ फैलाना पड़ जाता। कितनी डरावनी कल्पना है यह !


यदि नभ में बादल न होते, तो मेघों की मंद-गंभीर ध्वनि न सुनाई देती। आकाश में बिजली का नृत्य न होता। इंद्रधनुष के दर्शन न हो पाते।


कवियों को काव्य-रचना के लिए प्रेरणा न मिल पाती। पक्षियों का कलरव न सुनाई देता। झरनों का 'झर-झर' बंद हो जाता। नदियों की कलकल ध्वनि लुप्त हो जाती। सावन के झूले अदृश्य हो जाते। कजली और मल्हार की तानें मौन हो जातीं।


ये सारी आशंकाएँ तब खरी निकलती, जब नभ में बादल न होते। किंतु हमें पूरा विश्वास है कि हर वर्ष नभ में बादल अवश्य घिरेंगे, वर्षारानी प्रसन्न होकर भारत-भूमि पर वर्षा करती रहेंगी। इसे हरी-भरी बनाए रखेंगी और हमें हर्षोल्लास से भरती रहेंगी। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।