अकाल एक भीषण समस्या हिंदी निबंध | akal ek bhishan samasya nibandh lekhan

 

अकाल एक भीषण समस्या हिंदी निबंध | akal ek bhishan samasya nibandh lekhan

नमस्कार  दोस्तों आज हम  अकाल एक भीषण समस्या हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। भारत कृषिप्रधान देश है। इस देश की लगभग बहत्तर प्रतिशत जनसंख्या छह लाख से भी अधिक गाँवों में निवास करती है। गाँवों में रहनेवाले लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। अतः कृषि ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था का मूलाधार है।




इस देश की कृषि पूरी तौर से वर्षा पर आधारित है। यदि समय पर वर्षा न हो या पर्याप्त मात्रा से कम हो, तो कृषि-उत्पादन में कमी आ जाती है। इसके विपरीत, यदि वर्षा बहत अधिक हो, तो नदियों में बाढ़ आ जाती है और खड़ी फसलें बह जाती हैं। इस प्रकार, अनावृष्टि और अतिवृष्टि, दोनों स्थितियों में अकाल की आशंका गहराने लगती है।



वर्षा कम होने या न होने पर जो अकाल पड़ता है, उसमें स्थिति बहुत गंभीर बन जाती है। _अकाल पड़ जाने पर कृषि उत्पादन घट जाता है। कृषि उत्पादों के भाव आसमान छने लगते हैं। निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों की क्रयशक्ति वैसे भी सीमित होती है। 




महँगाई बढ़ने पर वे हाहाकार करने लगते हैं। गरीब किसान अपने पशु और जमीन कौड़ियों के मोल बेचने लगते हैं। जमाखोरों और सूदखोरों की बन आती है। वर्षा के अभाव के कारण पीने के पानी का संकट उपस्थित हो जाता है। बाँधों के जलाशयों का जल-स्तर गिरने लगता है। उद्योगों के लिए जल और विद्युत की आपूर्ति करना मुश्किल हो जाता है।




 इसके परिणामस्वरूप औद्योगिक उत्पादन घट जाता है। सूखे के समय लोगों को रोजगार देने और पशुओं के लिए चारे की पूर्ति करने में सरकार को बहुत खर्च करना पड़ता है। इससे विकास के दूसरे कार्यक्रम रुक जाते हैं।




अतिवृष्टि होने पर नदियों में बाढ़ आ जाती है। खड़ी फसलें बह जाती हैं। धन और पशुओं की बहुत हानि होती है। भू-स्खलन होने से रेलमार्ग और सड़के बंद हो जाती हैं। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर राहत-कार्य आरंभ करना पड़ता है। इससे सरकार की तिजोरी पर भारी बोझ पड़ता है और देश के आर्थिक विकास की गति मंद पड़ जाती है।




हमारा देश विश्व के विशाल देशों में गिना जाता है। इस विशाल देश में सदा किसी न किसी भाग में सूखे अथवा बाढ़ के कारण अकाल या दुष्काल की समस्या बनी रहती है। कुछ राज्यों में सूखे और कुछ अन्य में बाढ़ के दृश्य एक ही समय देखने को मिलते हैं। इस प्रकार सूखा या बाढ़ की समस्या राष्ट्रीय समस्या है और राष्ट्रीय स्तर पर ही इसका समाधान ढूँढ़ना चाहिए।





स्वाधीनता मिलने के पचास वर्ष बाद भी इस देश में अकाल या बाढ़ जैसी समस्या का तात्कालिक समाधान ही किया जाता है। सूखा पड़ने पर सरकार द्वारा सड़कें बनवाना, पशुओं के लिए चारे की आपूर्ति करना, रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना, आर्थिक सहायता प्रदान करना आदि कार्यक्रम शुरू किए जाते हैं। 




दूसरी तरफ, बाढ़ की स्थिति में बड़े पैमाने पर राहत-कार्य आरंभ करने पड़ते हैं। किंतु इन कार्यक्रमों से समस्या का स्थायी समाधान नहीं प्राप्त होता।



हमारे देश के उत्तरी भाग में गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी सदावाही नदियाँ हैं। उनसे नहरें निकाल कर उनका अतिरिक्त जल दक्षिण भारत की नदियों में ले जाना चाहिए। इससे उत्तरी भारत की नदियों के क्षेत्र में बाढ़ का संकट दूर होगा और दक्षिण भारत के सखाग्रस्त क्षेत्रों को सिंचाई के लिए पर्याप्त जल मिल सकेगा।



हमारे देश की कृषि मानसनी वर्षा पर निर्भर है। अतः देश की वेधशालाओं को उचित समय पर मानसून-संबंधी सही भविष्यवाणी करने के लिए सक्षम बनाना पड़ेगा। वनों के विनाश से वर्षा की मात्रा घट जाती है और बाढ की तीव्रता बढ़ जाती है।



इस समस्या के समाधान के लिए देश की जनता को अधिकाधिक वृक्षारोपण कर वनों की सुरक्षा करनी होगी। हमें अकाल और बाढ़ की समस्याओं को राष्ट्रीय समस्याएँ मानकर उनका हल खोजना होगा, अन्यथा वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के लिए अभिशाप बन जाएँगी। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।