रेलगाड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध। Autobiography of Train in Hindi

 

 रेलगाड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध। Autobiography of Train in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  रेलगाड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। क्या आप भीड़ की धक्का-मुक्की से परेशान हो गए हैं? आइए, चंद क्षण इस बेंच पर बैठकर सुस्ता लें। हैरान क्यों हो रहे हैं? यह तो मैं, रेलवे प्लेटफार्म बोल रहा हूँ। बैठिए, आपको अपनी जीवन-गाथा सुना दूं। शायद इससे आपका मन बहल जाए और आपकी थकान दूर हो जाए।



दूर-दूर तक फैले मेरे इस विशाल शरीर को देखकर आप आश्चर्यचकित हो रहे हैं न? केवल दस वर्ष पूर्व ही मेरा निर्माण हुआ है। मुंबई महानगर के आसपास अनेक उपनगर बसे हुए हैं। इन उपनगरों और महानगर के बीच दिन-रात यात्रियों का आवागमन चलता रहता है।



 इस उपनगर में जब यात्रियों को बहुत अधिक असुविधा होने लगी, तब उन्होंने अनेक बार प्रदर्शन और आंदोलन किए। आखिर रेल मंत्रालय ने इस उपनगर के लोगों की सुविधा के लिए मेरा निर्माण करवाया। मेरे निर्माण में हजारों टन सीमेंट, लोहा तथा पत्थर लगे। निर्माण-कार्य लगभग छ: महीनों तक चलता रहा। सैकड़ों मजदूरों ने दिन-रात काम किया। तब कहीं जाकर मेरे इस विशाल शरीर का निर्माण हो सका। जब मेरा निर्माण पूरा हुआ, तब लोग मेरी विशालता देखकर स्तब्ध हो गए।मेरे निर्माण को रेल मंत्रालय ने अपनी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना। 


अब खोज होने लगी किसी प्रतिष्ठित उद्घाटन-कर्ता की, जो मुझे जनता की सेवा में राष्ट्र को समर्पित कर दे। रेल मंत्रालय के अधिकारियों ने राज्य के मुख्यमंत्री से मेरा उद्घाटन करने की प्रार्थना अनुरोध किया। राष्ट्रपति माहाँ पधारे। वह दिन मला रेलगाड़ी को का। मुख्यमंत्री महोदय बड़े ही कशल राजनीतिज्ञ थे। 


उन्होंने राष्ट्रपति महोदय से मेरा उद्घाटन करने का अनुरोध किया। राष्ट्रपति महोदय ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया और निश्चित दिन वे मेरा उदघाटन करने के लिए यहाँ पधारे। वह दिन मुझे सदैव याद रहेगा, जिस दिन राष्ट्रपति महोदय ने अपने करकमलों से हरी झंडी दिखाकर पहली रेलगाड़ी को यहाँ से गुजरने का संकेत दिया था। 



अब मैं दिन-रात अपने दोनों ओर से गुजरनेवाली रेलगाड़ियों का शोर सुनता रहता हूँ। सुबह के चार बजे से मध्यरात्रि के बाद तक कानों को बहरा बना देनेवाला यह शोर चलता रहता है। प्रत्येक रेलगाड़ी के आगमन के काफी पहले से ही यात्रियों के झुंड मुझ पर चहलकदमी करने लगते हैं। रेलगाडी दिखाई देते ही वे सतर्क होकर खडे हो जाते हैं। 



रेलगाड़ी रुकते ही वे डिब्बों के दरवाजों की ओर झपट पड़ते हैं। उसी समय उतरनेवाले यात्री गाड़ी से बाहर निकलना चाहते हैं। इस समय यात्रियों के बीच जो संघर्ष होता है, वह देखते ही बनता है। इस संघर्ष में स्त्रियों, बच्चों, बूढ़ों और अपाहिजों की बड़ी दुर्दशा होती है। मैं जड़ होने के कारण उन असहायों की कोई सहायता तो कर नहीं पाता, केवल उनकी चीख-पुकार सुनकर रह जाता हूँ।

मेरे निर्माण के बाद धीरे-धीरे मुझ पर दुकानें तथा स्टॉल स्थापित होने लगे। आपने देखा ही होगा कि मेरे इस छोर पर एक टी-स्टॉल और एक समाचारपत्र, पत्रिकाओं आदि का स्टॉल स्थापित हो गया है। मेरे दूसरे छोर पर भी एक चाय का स्टॉल स्थापित हो चुका है। अभी पिछले साल यहाँ के लायन्स क्लब ने यात्रियों की सुविधा के लिए मेरे ठीक बीचोबीच एक प्याऊ बनवा दिया है। 



जब इसका शीतल जल पीकर यात्री तृप्त होते हैं, तो उनके चेहरों पर तृप्ति की झलक देखकर मैं बड़े संतोष का अनुभव करता हूँ। रेल-विभाग ने सचारु प्रशासन के लिए मेरे आसपास अनेक छोटे-बड़े कार्यालय भी स्थापित कर दिए हैं। किंत इन दुकानों, कार्यालयों और यात्रियों के जमघट के कारण मुझ पर सदा गंदगी का साम्राज्य बना रहता है।



 मुझे झाड़-पोंछकर स्वच्छ रखने के लिए दो-चार महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की गई हैं, लेकिन वे अपना अधिकांश समय गप-शप में ही बिता देती हैं। अनेक फेरीवाले भी अपनी भाग-दौड़ से मुझे परेशान करते रहते हैं मुझे सबसे ज्यादा अखरती है मानव की अवसरवादिता।



 जब कोई यात्री काफी समय तक मुझ पर चहलकदमी करने के बाद रेल के डिब्बे में चढ़ते समय जलती सिगरेट फेंक देता है या मुझे पान की पीक से रंग देता है, तब मैं उसकी अवसरवादिता पर कढ़ता है। अब तो मानव की अवसरवादिता, रेल-विभाग के कर्मचारियों की उपेक्षा और प्राकृतिक प्रकोपों का शिकार बनकर मैं जीर्ण-शीर्ण हो चुका हूँ। 


अब इसी सुखद कल्पना में डूबा रहता हूँ कि कभी कोई महानुभाव मेरे परिसर में पदार्पण करेंगे, तभी उनकी कृपा से मेरा जीर्णोद्धार होगा। उसी दिन मुझे अपने बीते दिनों का वैभव फिर से प्राप्त हो सकेगा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।