भारत में लोकतंत्र पर निबंध | Democracy in India Essay in Hindi

 

 भारत में लोकतंत्र पर निबंध | Democracy in India Essay in Hindi 


नमस्कार  दोस्तों आज हम भारत में लोकतंत्र इस विषय पर निबंध जानेंगे। विश्व के कुछ देशों में प्रजातान्त्रिक सरकारों के द्वारा जनमत के प्रति उपेक्षा बरती जाती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि विश्व के कुछ प्रजातान्त्रिक देशों में नीतियों को लागू करते समय जनमत की इच्छाओं को ध्यान में नहीं रखा जाता है।


प्रजातान्त्रिक देशों में, जहाँ सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है वहाँ यह सम्भव नहीं है कि वह जनमत की उपेक्षा कर सके।


ऐसी प्रजातान्त्रिक सरकार जो जनमत की अवहेलना करती है, जनता में अपनी प्रतिष्ठा को खो देती है, परन्तु आधुनिक काल में विश्व की अधिकांश सरकारें या तो जनमत को दबा देती हैं या जनता को अज्ञानता के अंधेरे में रखती हैं।


प्रसिद्ध दार्शनिक रसल ने अपने निबन्ध जनमत के खतरे में यह स्पष्ट किया है कि जनमत, विश्व में अशांति के खतरे को उत्पन्न करता है। इस सम्बंध में विभिन्न मत हो सकते हैं। इस परस्पर मत विभिन्नता के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के विचारों को आत्मसात नहीं कर सकता है। 


अतः वह स्वयं ऐसी व्यवस्था में जिसमें एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के मत को अनिवार्यतः बाध्यकारी रूप में स्वीकार करना पड़े, स्वयं को अशांत या असंतष्ट महसस करता है. परन्त रसल का यह तर्क व्यक्ति के निजी जीवन में सही हो सकता है, राजनीतिक व्यवस्था के सम्बंध में नहीं।


ऐसे देशों में जहां प्रतिनिधियात्मक सरकार है, जनमत के निर्वाचित प्रतिनिधियों का जनमत के प्रति उत्तरदायी होना आवश्यक है।



कभी-कभी सरकार जनमत को दबाने के लिये दमनकारी शासन प्रयुक्त करती है, परन्त इस सम्बंध में इतिहास का अनुभव यह प्रदर्शित करता है कि जनमत को जितना दबाया जाता है, वह उतनी ही तेजी से एक शक्तिशाली जन-विद्रोह के रूप में उभरता है।



सरकार द्वारा जनमत को दबाये जाने पर शासक वर्ग के प्रति जनता का असंतोष बढ़ जाता है एवम सरकार द्वारा व्यापक रूप में प्रचार किये जाने पर भी शासक वर्ग के प्रति जनता की राय अपरिवर्तित रहती है। ऐसी



स्थिति में जनता का झुकाव विरोधी दलों की ओर हो जाता है। अतः जनमत को आसानी से नहीं दवाया जा सकता है जनमत किसी एक घटना या कार्य के परिणामस्वरूप सृजित नहीं होता है बल्कि यह शासक वर्ग द्वारा प्रताड़ित दबाये हुए जन-समुदाय के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन की पूर्ण अभिव्यक्ति का परिणाम है। 



अत: ऐसी स्थिति में सरकार का यह दायित्व हो जाता है कि जनता की इच्छाओं को ध्यान में रखे। सरकार की शक्ति का स्रोत जनता है अत: कोई भी सरकार जनता की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सकती है। कोई भी सरकार जनमत को नहीं कुचल सकती।



कुछ सरकारें जनता को यह कहकर संतुष्ट कर सकती हैं कि ऐसे कार्य राष्ट्रीय हित के लिये घातक हैं, परन्तु वह भूल जाती है कि राष्ट्रीय हित की अभिव्यक्ति जनमत के द्वारा ही होती है।




लार्ड ब्राईस के मतानुसार, जनमत के निर्माण करने में सामान्यतः तीन प्रकार के व्यक्तियों की भूमिका रहती है। इनमें से पहले वर्ग के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति आते हैं जो व्यवस्थापिका के सदस्य होने के नाते सार्वजनिक महत्त्व के मामलों से संलग्न होते हैं।



दूसरे वर्ग के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति आते हैं जो अपने हितों की पूर्ति के लिये राजनीति को माध्यम मानते हैं। तीसरे वर्ग के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति आते हैं जो यद्यपि सार्वजनिक मामलों से तो सम्बंधित नहीं होते हैं, परन्तु वे अपने आस-पास के वातावरण वर्ग तथा पारिवारिक वातावरण इत्यादि से प्रभावित होते हैं। 



ऐसे वर्ग के व्यक्ति सामान्यतः उच्च राजनीतिक नेताओं की विचारधारा से प्रभावित होते हैं इसके अतिरिक्त राजनीतिक दल भी प्रचार इत्यादि माध्यम से जनमत को संगठित करते हैं।



इसी प्रकार प्रेस भी जनमत के संगठन में अपनी प्रमुख भूमिका निभाता है। आधुनिक युग में जनमत को संगठित तथा अभिव्यक्त करने के तीन प्रमुख माध्यम-शैक्षणिक संस्थाएं, सिनेमा, ऐसोसियेशन तथा व्यवस्थायिका आदि हैं, 



परन्तु कभी-कभी जनमत की अभिव्यक्ति करने वाले ये अभिकर्ता नैतिक दृष्टि से अनुपयुक्त होने के कारण बहुत-सी समस्याओं को जन्म देते हैं। स्वस्थ जनमत के संगठन में धार्मिक अंधविश्वास तथा कट्टरता, साम्प्रदायिक दृष्टिकोण, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अभाव, शिक्षा तथा राजनैतिक परिपक्वता की कमी आदि बाधाएं उत्पन्न करते हैं। 



भारत में वर्तमान परिस्थितियों में स्वस्थ जनमत के गठित किये जाने की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि प्रजातंत्र का स्थायित्व केवल स्वस्थ जनमत पर ही आधारित है। परन्त सरकार के मामलों में ऐसा नहीं है।



जनता या समाचार-पत्र सरकार की आलोचना करेंगे। सरकार के कार्यों में बाधा तो उत्पन्न कर ही सकते हैं, परन्तु इस सम्बन्ध में यह कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि सत्तारूढ दल की वास्तविक या निरंकुश गतिविधियों पर नियंत्रण रखने का यही एक मात्र साधन है। 



आधुनिक युग में समाचार-पत्रों के सम्बन्ध में इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे कई बार निर्दोष व्यक्तियों का भी बलि का बकरा बनाने से नहीं चूकते हैं। 



अधिकांश समाचार-पत्र या तो वर्ग-विशेष के हित को प्रदर्शित करते हैं अथवा वे राजनीतिक पक्षपात पर आधारित हैं, परन्तु फिर भी समाचार जनमत की अभिव्यक्ति करते हैं।


प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली में जनमत की अभिव्यक्ति अत्यन्त आवश्यक है। सामान्यतया जनमत से तात्पर्य जनता के किसी भी विवादित विषय पर दृष्टिकोण से होता है। 



जनमत की अभिव्यक्ति विभिन्न अभिकरणों के माध्यम से होती है। भारत में वर्तमान परिस्थितियों में लोकतंत्र को विस्थापित करने तथा उसमें स्थायित्व लाने में केवल स्वस्थ जनमत की आवश्यकता है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।