दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की आत्मकथा हिंदी निबंध | Durghatna Grast vyakti ki atmakatha essay in hindi

 

 दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की आत्मकथा हिंदी निबंध | Durghatna Grast vyakti ki atmakatha essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की आत्मकथा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। जाड़े का दिन था। सुबह-सुबह उठते ही टेलीफोन की घंटी बज उठी। आँखें मलते हुए मैंने फोन का रिसीवर उठाया, तो पुणे से एक मित्र की व्यग्रता भरी वाणी सुनाई पड़ी। उन्होंने मुझे तुरंत पुणे बुलाया था। मेरा उनींदापन तत्काल काफूर हो गया। जल्दी-जल्दी नहा-धोकर मैंने कुछ नाश्ता किया और पुणे की बस पकड़ने के लिए बस-स्टैंड की ओर चल पड़ा।



बस-स्टैंड पर पहुँचा, तो पुणे की बस छूटनेवाली ही थी। झटपट मैं बस में चढ़ गया। उस दिन बस में विशेष भीड़ नहीं थी। मुझे खिड़की के पास की सीट मिल गई। मैं आराम से बैठ गया और बैग में से 'नवभारत टाइम्स' निकाल कर सुर्खियों पर निगाह दौड़ाने लगा। 



हठात् बस कंडक्टर की आवाज ने मुझे चौंका दिया। वह टिकट के बारे में पूछ रहा था। उसे सौ रुपये का नोट देते हुए मैंने पुणे का टिकट देने को कहा। कंडक्टर से टिकट और बचे पैसे लेकर मैं समाचार पत्र पढ़ने में लीन हो गया।

सहसा मुझे लगा कि बस-चालक बहुत ही तेजी से बस चला रहा है।



मैंने बस में चारों ओर निगाह दौड़ाई, तो देखा कि लगभग सभी यात्रियों के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। महिलाएँ और बच्चे तो विशेष रूप से व्यग्र हो उठे थे। मैंने बस-चालक की सीट के पास जाकर उससे थोड़ी धीमी गति से बस चलाने को कहा, लेकिन उसने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया और पहले की ही तरह तेजी से बस चलाता रहा।

अचानक सड़क के एक मोड़ पर एक ट्रैक्टर रास्ता रोके हुए खड़ा दिखाई पड़ा। 



हमारी बस के चालक ने ट्रैक्टर को बचाते हुए बस निकालने की कोशिश की। मगर उसकी कोशिश बेकार साबित हुई। हमारी बस सड़क के किनारे के एक पेड़ से टकराती हुई नीचे खेत में उतर गई। वहाँ कुछ दूर जाकर पुनः एक पेड़ से टकरा कर खड़ी हो गई।



टक्कर इतने जोर की थी कि बस के सभी यात्री अपनी-अपनी सीट पर से नीचे गिर गए। मैं भी अपनी सीट पर से नीचे गिर गया था। बस की खिड़कियों के शीशे टूट गए थे और चारों ओर उनके टुकड़ें बिखर गए। स्त्रियाँ और बच्चे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। 'बचाओ, बचाओ' की आवाजों से सारा वातावरण गूंज उठा था। इसी बीच बस-चालक और कंडक्टर बड़ी फुर्ती से लापता हो गए।



किसी तरह अपने को सँभालकर मैं उठा और बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। बस में प्रवेश करने और उसमें से निकलने के दरवाजे बंद हो गए थे। केवल बस-चालक की सीट के पास का दरवाजा खुला हुआ था। उस दरवाजे से मैं बाहर निकल तो आया, पर इस कोशिश में मेरी कमीज फट गई और लोहे की कुर्सी के कोने ने मेरी कुहनी को बुरी तरह छील दिया। खून से मेरी कमीज की बाँह भीग गई।

बाहर निकल कर देखा, तो कुहराम मचा हुआ था। एक नवयुक्ती निढाल होकर बस के प्रवेश द्वार में पड़ी हुई थी। पता चला कि उसका एक पैर कट गया था। एक प्रौढ़ सज्जन के सिर पर गहरा घाव लगा था। उनका चेहरा लहूलुहान हो रहा था। एक बच्चे के हाथ में गहरी चोट लगी थी। वह जोर-जोर से रो रहा था। कई अन्य यात्री भी घायल हो गए थे। यात्रियों के सामान चारों ओर बिखरे पड़े थे।



किसी तरह लोगों ने उस नवयुवती को बस के प्रवेश द्वार में से निकाला और पास के अस्पताल में ले गए। प्रौढ़ सज्जन और बच्चे को भी वहीं पहुँचाया गया। एक वृद्धा को भी गहरी चोट आई थी। उसके बेटे सहारा देकर उसे अस्पताल ले गए। मैं भी अपनी कुहनी की चोट से व्याकुल हो रहा था। नजदीक ही एक दवाखाना था। वहाँ जाकर मैंने डॉक्टर से इंजेक्शन लिया और घाव पर पट्टी बँधवाई।



दूसरे दिन मैंने समाचारपत्र में पढ़ा कि दुर्घटनाग्रस्त बस के चालक और कंडक्टर, दोनों ही शराब पिए हुए थे, इसलिए बस पर नियंत्रण नहीं रख पाए। इस दुर्घटना को मैं जीवन भर भूल नहीं सकूँगा। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।