एक टोपी की आत्मकथा पर निबंध | Essay on autobiography of cap

 

एक टोपी की आत्मकथा पर निबंध |  Essay on autobiography of cap

नमस्कार  दोस्तों आज हम एक टोपी की आत्मकथा पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। मुझे इस गरीब मजदूर के सिर पर बैठी देखकर आप मुस्करा रहे हैं। ठीक ही तो है-मेरे किनारों पर मैल की परत जम गई है। मेरे शरीर पर जहाँ-तहाँ धब्बे पड़ गए हैं। मेरी दुर्दशा देखकर आपका व्यंग्यपूर्वक मुस्कराना स्वाभाविक है। किंतु मैंने भी अच्छे दिन देखे हैं।


देश की आजादी की लड़ाई के दौरान मेरी बहुत इज्जत थी। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ हमारी कीमत घटती गई। क्या आप सुनेंगे मेरी रामकहानी? अच्छा, तो सुनिए सबसे पहले खेतों में खड़ी दूध के समान सफेद कपास चुनी गई। उससे सूत काता गया। उसी सूत के ताने-बाने से कपडा बुना गया,


जिसे एक नेता महोदय की पत्नी ने खरीदा। वे अपने पतिदेव के लिए एक सुंदर टोपी सिलवाना चाहती थीं। इसलिए वे उस कपड़े के टुकड़े को दर्जी के यहाँ दे आईं। दर्जी ने उस कपड़े को काट-छाँट कर लोहे की सुई से निर्दयापूर्वक सिया। इतना कष्ट सहन करने के बाद मेरा जन्म हुआ। मेरे जन्म लेते ही उस दर्जी ने इस्तिरी तपाकर मेरे शरीर पर चला दी। 


उस समय मुझे जो कष्ट हुआ, उसका वर्णन करने में मैं असमर्थ हूँ। पर इससे मेरे रूप में निखार आ गया।

जब नेता महोदय की पत्नी ने मुझे देखा, तो उनकी आँखें चमक उठीं। उन्होंने तुरंत मुझे एक गुलाबी कागज में लपेटा और अपने पति को उपहार के रूप में दे दिया।


नेता महोदय भी अपनी पत्नी से प्रेमोपहार के रूप में मुझे पाकर बहुत प्रसन्न हुए और उसी समय उन्होंने मुझे अपने सिर पर पहन लिया। जब मुझे सिर पर लगाकर वे आइने के सामने खड़े हुए, तो अपनी छवि देखकर मुस्करा पड़े। उस दिन से मैं नेता महोदय के सिर पर ही रहने लगी। केवल सोने के पहले वे मुझे सिर पर से उतारते और बहुत सावधानी से खूटी पर टाँग देते।



जिस दिन से उन नेता महोदय ने मुझे धारण करना शुरू किया, उसी दिन से उनकी उन्नति होने लगी। जल्दी ही राज्य के मुख्यमंत्री ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में ले लिया। इसके बाद जो चुनाव हुआ, उसमें वे भारी मतों से जीते और उन्हें कैबिनेट स्तर का मंत्री बना दिया गया। यद्यपि उनकी उन्नति के पीछे उनकी प्रतिभा और परिश्रम का ही हाथ था, फिर भी वे अपनी प्रगति का अधिकांश श्रेय मुझे ही दिया करते थे। उनकी कृपा से मेरे दिन बहुत सुख से बीत रहे थे।


सुख के समय में ही किसी को सोचने-विचारने का अवकाश मिलता है। अपने सुख के क्षणों में जब मैंने दृष्टि फैलाकर देखा, तो पाया कि अलग-अलग रूपों में दुनिया भर में मेरी बिरादरी फैली हुई है। वास्तव में, प्राचीन काल से ही मैं अनेक रूपों में अवतार लेती आई हैं।

पुराने जमाने के सैनिकों के शिरस्त्राण, अंग्रेजों के हैट, मराठे सरदारों के साफे, नेताओं की टोपियाँ-ये सब मेरे ही विविध अवतार हैं। अपनी बिरादरी का इतना विस्तार देखकर मैं फूली न समाई।



लेकिन सभी दिन एक समान नहीं होते। मेरे जीवन में भी एक ऐसी घटना घट गई, जिसकी जरा भी आशंका नहीं थी। विधान मंडल में सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित हो गया और मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना पड़ा। नेता महोदय का मंत्री पद चला गया। जब वे घर आए, तो क्रोध से तमतमाए हुए थे।


घर के भीतर आते ही, उन्होंने मुझे अपने सिर पर से उतारा और खीजकर एक कोने में फेंक दिया। इस असह्य अपमान से मैं बेहोश हो गई।



जब आँखें खुलीं, तो देखा कि यह गरीब किशन मुझे सिर पर लगाए हुए है। तब से मैं इसी गरीब की सेवा कर रही हूँ। यह बीड़ी बनाने का काम करता है। जब यह अपने सिर पर तेंदू के सूखे पत्तों का गट्ठर उठाकर ले आता है, तब मेरा शरीर धूल से भर उठता है। उस समय बीते दिनों की याद आने पर मेरी आँखें भर आती हैं। तब कोई कानों में गुनगुना जाता है, 'सबै दिन जात न एक समान।'


अब तो यही इच्छा है कि इसी किशन की सेवा करते-करते मैं अंतिम साँस लूँ।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।