यदि मैं कवि होता हिंदी निबंध | essay on if i were a poet in hindi

 

 यदि मैं कवि होता हिंदी निबंध | essay on if i were a poet in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम यदि मैं कवि होता हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। किसी मनीषी का उद्गार है कवि बनते नहीं, पैदा होते हैं। ' कविता करने की शक्ति सीखने या अभ्यास करने से नहीं प्राप्त होती। वह तो व्यक्ति के हृदय में छिपी हुई ईश्वरीय शक्ति है। फिर भी, यह कल्पना कितनी सुखद है- यदि मैं कवि होता...!


यदि मैं कवि होता, तो मेरी कविता प्रकृति का.दर्पण होती। उसमें पहाड़ों की बर्फीली चोटियों का वर्णन होता, नदियों की कल-कल ध्वनि का संगीत होता, निर्मल झरनों का निर्घोष गूंजता और मनोहर उपवन की रमणीय छटा होती। मेरी कविता में निर्दोष बालकों की मनोहारी क्रीड़ाओं का वर्णन होता और मानवता के पुजारी महान पुरुषों का गुणगान होता।


मेरी काव्य-पंक्तियों में सुंदर शब्दावली होती, जो फूलों की मुस्कान की तरह सबका हृदय जीत लेती। उनमें हृदय से निकले उद्गार होते, जिन्हें पढ़कर या सुनकर लोग भ्रमरों की तरह उन्हें गुनगुनाने लगते। उनमें सरल एवं प्रवाहमयी भाषा में सुंदर विचारों की अभिव्यक्ति होती, जो चिड़ियों की चहक की याद दिला देती। मैं प्रकृति के उन उपादानों का भी चित्रण करता, जो कुरूप समझे जाते हैं।


मेरी कविता में भयानक तूफानों, सागर की आकाश चूमती लहरों, भूकंप के आघातों, ज्वालामुखी के विस्फोटों आदि का भी वर्णन होता।


यदि मैं कवि होता तो अपनी कविता के माध्यम से सामाजिक शोषण के शिकार नर-नारियों की व्यथा व्यक्त करता और उन्हें क्रांति करने के लिए ललकारता। यदि मुझे कवित्व-शक्ति का वरदान मिला होता, तो मैं उसका उपयोग स्वार्थी राजनेताओं तथा समाज के पाखंडी ठेकेदारों की पोल खोलने में करता। 


मैं अपनी कविता के माध्यम से सांप्रदायिकता, धर्मांधता, क्षेत्रीयता आदि विघटनकारी तत्त्वों की कड़ी निंदा करता तथा देश की अखंडता और एकता बनाए रखने का संदेश देता।


यदि मैं कवि होता, तो अपनी रचनाओं में अपने समाज और देश की परिस्थितियों का चित्रण तो करता ही, अंतरराष्ट्रीय हलचलों के बारे में भी कविता के माध्यम से अपने विचार प्रकट करता। संसार में जहाँ कहीं भी मानवता पर अत्याचार होते देखता, उसके विरोध में काव्य-रचना करता। 


अपनी कविता द्वारा मैं अत्याचार से पीड़ित जनता को संदेश देता कि वह अत्याचारियों का आखिरी दम तक मुकाबला करे और उनको समाप्त करके ही चैन ले। मैं भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का समुचित अध्ययन करता। अपनी मातृभाषा के काव्यों के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं के काव्यग्रंथों को भी मैं पढ़ता। 


यूरोप के महाकवियों की कृतियों का भी मैं अनुशीलन करता। मैं देश-विदेश के रस, अलंकार और छंदशास्त्र संबंधी ग्रंथों का यथासंभव अध्ययन करता। आज बड़े-बड़े कवि और साहित्यकार पैसेवालों की स्तुति करते हुए दिखाई देते हैं। यदि मैं कवि होता, तो कभी अपनी कविता को चंद चाँदी के टुकड़ों पर न बेचता।


मेरी कविता में एक ओर अपने समाज के जीवन का चित्र होता, तो दूसरी ओर समाज को नए आदर्शों की ओर बढ़ने की प्रेरणा होती। मैं अपनी रचनाओं में पीड़ित और दुखी जनता के रुदन और हाहाकार को चित्रित करते हुए उसे आशा, उत्साह और दृढ़ता का संदेश भी देता।


इस प्रकार मैं अपनी कविता में सत्यं शिवं-सुंदरम्' की साधना करता ! काश ! मैं कवि होता! दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।