धन के महत्व पर निबंध | essay on importance of money in hindi

 

धन के महत्व पर निबंध | essay on importance of money in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम धन के महत्व पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। 

'बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया'- इस उक्ति को आपने कई बार सुना होगा। अनेक बार आपने स्वयं भी इसकी सच्चाई का अनुभव किया होगा। आपके जीवन में बार-बार ऐसे प्रसंग आए होंगे, जब आपने मनुष्य के ऊँचे-ऊँचे आदर्शों को रुपये की खनखनाहट के आगे जमीन चूमते देखा होगा।



अपने सगे-संबंधियों अथवा मित्रों से मानव-जीवन के घनिष्ठ एवं पवित्र संबंधों को रुपये की चकाचौंध में बनने या बिगडने की सत्यकथाएँ भी आपने सुनी होंगी। ऐसे अवसरों पर आप भी बोल उठे होंगे-सबसे बडा रुपैया ! 



भारतीय संस्कृति में मानव-जीवन के चार पुरुषार्थ माने गए हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इनमें 'अर्थ' को दूसरा स्थान दिया गया है। किंतु आधुनिक युग में 'अर्थ' पहले स्थान पर आ गया है। 'धर्म' अब पूरी तरह 'अर्थ' पर निर्भर हो गया है, क्योंकि 'अर्थ' के अभाव में किसी भी बड़े धार्मिक कार्य का संपन्न होना असंभव है।



हमारे देश में पारिवारिक जीवन को बड़ा महत्त्व दिया गया है। हमें हमेशा माता-पिता के प्रति सम्मान की भावना, भाई-बहनों के लिए स्नेह, पत्नी के प्रति एकनिष्ठ प्रेम तथा संतान के लिए कल्याणकारी भावनाएँ रखने का उपदेश दिया जाता है। किंत इन सभी पवित्र संबंधों का बनना अथवा बिगड़ना रुपये के अधीन है।



यदि आप रुपया कमाने में कुशल हैं, तो आपका पारिवारिक जीवन बड़ा मधुर तथा स्नेहपूर्ण रहेगा। यदि आप धन अर्जित करने में असफल होते हैं, तो आपका पारिवारिक वातावरण कटु एवं कलहपूर्ण बन जाएगा।



रुपये के कारण भाई-भाई, पिता-पुत्र यहाँ तक कि माता और पुत्र के बीच भी मुकदमेबाजी, मार-पीट और कभी-कभी हत्या तक होने की खबरें समाचारपत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। उन्हें पढ़कर अनायास ही मुँह से निकल पड़ता है-'बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया !'



वर्तमान युग में सर्वत्र धन की ही पूजा होती है। उच्च कोटि के विद्वान भी जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चाँदी के टुकड़ों पर अपनी विद्वत्ता बेचने को विवश हो जाते हैं। कई बार न्यायाधीशों की न्याय-तुला भी रुपये के चुंबकीय आकर्षण के कारण लक्ष्मीपुत्रों की ओर झुकती हुई देखी गई है।



महान दार्शनिक, सहृदय साहित्यकार, वीतरागी साधु-संत, कर्तव्यपरायण उच्च अधिकारी, सभी रुपये की हृदयग्राही झंकार के आगे आत्मसमर्पण करते हुए दिखाई देते हैं।



रुपये की इस असीम शक्ति का रहस्य उसकी क्रय-शक्ति में छिपा हुआ है। जिनके पास रुपयों का विपुल भंडार है, वे सब कुछ खरीद सकते हैं। वे अनैतिक काम करके भी रुपये के बल पर कानून को ठेंगा दिखाकर साफ-साफ बच जाते हैं। लक्ष्मी का एक अन्य नाम 'श्री' भी है। 



प्राचीन काल में व्यक्ति के सौंदर्य, बल, बुद्धि, कर्मठता, पौरुष आदि सभी सद्गुणों के समन्वय को 'श्री' कहा जाता था। वर्तमान युग के मानव ने विनिमय की सुविधा के लिए 'मुद्रा' का प्रचलन किया। धीरे-धीरे मुद्रा के आधार पर सौंदर्य, बल, बुद्धि, कर्मठता आदि का क्रय-विक्रय होने लगा। परिणामस्वरूप, मुद्रा या रुपये में असीम शक्ति संचित हो गई।



रुपये के बल पर अनेक प्रकार के अच्छे कार्य भी किए जा सकते हैं। रुपयों से रोगियों की चिकित्सा और सेवा के लिए अस्पताल बनवाए जा सकते हैं। शिक्षा के प्रसार के लिए विद्यालयों की स्थापना की जा सकती है। बेरोजगारी दूर करने के लिए उद्योग-धंधे प्रारंभ किए जा सकते हैं।



अकाल, बाढ़, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित जनता की मदद के लिए राहत-योजनाएँ चलाई जा सकती हैं। किंतु इसके विपरीत, यदि धन के साथ-साथ दुर्बुद्धि भी आ जाए, तो व्यक्ति धन का दुरुपयोग कर, पलक झपकते ही सारी समाज-व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर सकता है।


आज सारा विश्व रुपये की उपासना में तल्लीन है। रुपये के अनेक रूप हैं। आज सारी मानवजाति रुपये के इन विविध रूपों की पूजा-अर्चना में संलग्न है। यह देखकर बरबस मुँह से निकल पड़ता है-सबसे बड़ा रुपैया ! दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।