विज्ञान के दुरुपयोग पर निबंध | Essay on Science A Curse or Abuse of Science in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम विज्ञान के दुरुपयोग पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।
सबेरे का समय था। मैं अखबार खरीदने के लिए घर के बाहर निकला ही था कि मुझे देखकर मेरे पड़ोसी जोर से बोले, “विज्ञान, तेरा सत्यानाश हो !''
मुझे बहुत अचरज हुआ। जब पड़ोसी के नजदीक जाकर, उनकी बेचैनी का कारण पूछा, तो भेद खुला। वे किसी फर्म में हिसाब लिखने का काम करते थे। थोड़े ही दिनों पहले उस फर्म के मालिक ने कम्प्यूटर मँगवा लिये थे। इससे कई कर्मचारियों की छंटनी हो गई थी।
मेरे पड़ोसी भी अपनी नौकरी खो बैठे थे। 'विज्ञान' पर उनकी झुंझलाहट का यही कारण था। __मेरे मन में विचारों की लहरें उठने लगीं। विज्ञान का अर्थ है, किसी विषय का क्रमबद्ध एवं सुसंगत ज्ञान। विज्ञान और वैज्ञानिक आविष्कार मानवजाति के लिए वरदानस्वरूप सिद्ध हुए हैं।
उसी विज्ञान के सत्यानाश की कामना करना कहाँ तक उचित है? जब और गहराई से सोचा, तो इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि मानवजाति की वर्तमान दुर्दशा के लिए विज्ञान और वैज्ञानिक आविष्कार ही जिम्मेदार हैं !
विज्ञान की मदद से मनुष्य ने अनेक प्रकार की मशीनें बनाई हैं।
इनसे औद्योगिक उत्पादन में बहुत वृद्धि तो जरूर हुई है, लेकिन इन मशीनों ने मजदूरों के मुँह की रोटी छीन ली है। इससे बेकारी को बढ़ावा मिला है। गाँवों से औद्योगिक केंद्रों और कारखानों में काम करने के लिए बड़ी संख्या में लोग शहर में आते हैं। इससे झुग्गी-झोंपड़ियोंवाली गंदी बस्तियों का विस्तार होता है।
इन बस्तियों में लोग गंदगी में रहते हुए नारकीय जीवन व्यतीत करते हैं। उनकी नैतिक और आध्यात्मिक प्रगति तो दूर रही, उनके बीच अनेक प्रकार के अपराध पनपने लगते हैं।
वैज्ञानिक प्रगति का एक भयानक दुष्परिणाम है, प्रदूषण और उसकी लगातार वृद्धि। कारखानों की चिमनियाँ जहरीली गैसें और धुआँ उगलती रहती हैं। कारों, मालवाहक कों आदि से प्रचुर मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड गैस छोड़ी जाती है। अणु-केंद्रों से निरंतर रेडियो-सक्रिय कणों का प्रसार किया जा रहा है। इन सब कारणों से वायुमंडल में बड़ी तेजी से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। कारखानों से निकलनेवाले रासायनिक पदार्थ और नगरों-महानगरों की गंदगी नदियों, झीलों तथा सागरों में बहा दी जाती है। इससे इन जलाशयों का जल प्रदूषित हो रहा है। कारों तथा ट्रकों की आवाजों, हवाई जहाजों के शोर, लाउडस्पीकरों की चिंघाड़ आदि से असहनीय ध्वनि-प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसके फलस्वरूप, लोगों में चिड़चिड़ापन, झगड़ालू प्रवृत्ति, उच्च रक्तचाप आदि की वृद्धि हो रही है। परमाणु परीक्षणों के कारण वायुमंडल में रेडियोधर्मिता बढ़ रही है। इससे चर्मरोग और कैन्सर जैसे असाध्य रोग बहुत तेजी से बढ़ते जा रहे हैं।
अनेक प्रकार की मशीनों ने मनुष्य के जीवन को भी यांत्रिक बना दिया है। मनुष्य मशीनों का दास बन गया है। उसकी कलाप्रियता और रचनात्मक शक्ति धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा मिलनेवाली सुविधाओं के कारण लोगों की इच्छाएँ और जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। लोग स्वार्थी, लालची और निर्दयी बन गए हैं। इन मशीनों और अन्य प्रकार के वैज्ञानिक आविष्कारों ने मनुष्य को अवकाश ही अवकाश प्रदान कर दिया है। इस अवकाश का दुरुपयोग वह सस्ते मनोरंजन के लिए करने लगा है। इससे उसकी शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की हानि हो रही है।
मनुष्य ने विज्ञान की मदद से भयंकर अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया है। अणु बम के बाद उसने हाइड्रोजन बम और कोबाल्ट बम भी बना लिये हैं। खाड़ी-युद्ध के दौरान न्यूट्रॉन बम का नाम भी सुनने में आया था।
संसार के बड़े राष्ट्रों के पास इन महाविनाशकारी बमों के ढेर हैं। उनके प्रयोग से सारी मानवजाति को भस्मीभूत किया जा सकता है। कुछ राष्ट्रों ने अनेक प्रकार की जहरीली गैसों के भंडार बना लिये हैं। जीवाणु-युद्ध का खतरा भी बढ़ रहा है।
विज्ञान ने सारी दुनिया को विश्वयुद्ध रूपी ज्वालामुखी के मुख पर बैठा दिया है, जिसका एक ही विस्फोट सारी दुनिया का विनाश कर सकता है। विज्ञान के इस विनाशकारी रूप को देखकर मुँह से एकाएक निकल पड़ता है - विज्ञान, तेरा सत्यानाश हो।
यह सच है कि वैज्ञानिक आविष्कार अपने-आप में हानिकारक नहीं हैं। लेकिन, स्वार्थी मानव ने विज्ञान का बहुत दुरुपयोग किया है। इससे वैज्ञानिक आविष्कार विनाशकारी बन गए हैं। इसीलिए राष्ट्र कवि 'दिनकर 'जी ने बुद्धिमान किंतु स्वार्थी मानव को चेतावनी देते हुए कहा है
सावधान, मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार, तो इसे दे फेंक, तज हो मोह, स्मृति के पार। खेल सकता तू नहीं, ले हाथ में तलवार, काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार ! दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।