यदि मैं अध्यापक होता हिंदी निबंध | if i were a teacher essay in hindi

 

यदि मैं अध्यापक होता हिंदी निबंध | if i were a teacher essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  यदि मैं अध्यापक होता हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रात:स्मरणीय स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा है – 'केवल वे ही व्यक्ति शिक्षक होने के योग्य हैं, जो पूर्ण शिक्षित एवं पुण्यात्मा हैं। ' यदि मैं अध्यापक होता, तो स्वामीजी के इस कथन को हमेशा याद रखता। मैं अपने विद्यार्थियों के सामने स्वयं को एक आदर्श अध्यापक के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करता।


यदि मैं अध्यापक होता, तो कक्षा में विद्यार्थियों को पूरे मनोयोग से पढ़ाता। आज लगभग हर विषय का पाठ्यक्रम बहुत विस्तृत और विविधतापूर्ण हो गया है। मैं यथासंभव प्रयत्न करता कि पाठ्यक्रम को संतोषजनक ढंग से पूरा कर सकूँ। 


मैं हमेशा यह प्रयत्न करता कि मेरे व्याख्यान रोचक और ज्ञानवर्धक हों, ताकि विद्यार्थियों का ध्यान पाठ्य विषय पर केंद्रित हो और वे उसे अच्छी तरह आत्मसात कर सकें। मैं सदा यह प्रयत्न करता कि विद्यार्थियों के ज्ञान की परिधि विस्तृत हो।


वर्तमान युग में ज्ञान की प्रत्येक शाखा में प्रतिदिन विस्तार होता जा रहा है। यदि मैं अध्यापक होता, तो अपनी अध्यापन-क्षमता में वृद्धि करने के लिए निरंतर अध्ययन करता रहता। जो अध्यापक अध्ययनशील नहीं होता, वह अपने विद्यार्थियों को समुचित रूप से पढ़ाने में असफल रहता है।


 मैं इस तथ्य को सदा ध्यान में रखता और अपने विषय से संबंधित नई-नई बातों की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता रहता। व्याख्यानों को रोचक तथा सुबोध बनाने के लिए मैं मानचित्रों, चार्टी तथा अन्यान्य वैज्ञानिक उपकरणों का भरपूर उपयोग करता, ताकि विद्यार्थी पाठ्य विषय को भली-भाँति समझ सकें।


आजकल सर्वत्र अनुशासनहीनता दिखाई देती है। अध्यापक भी इसके अपवाद नहीं हैं। यदि मैं अध्यापक होता, तो स्वयं नियमित रहता और अनुशासन की ओर विशेष ध्यान देता। मैं विद्यार्थियों के साथ आत्मीयता रखता और उनमें भेदभाव अथवा पक्षपात न करता।


 मैं सदैव विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करता कि वे निस्संकोच भाव से अपनी समस्याएँ मेरे सामने रखें। मैं उनकी सहायता करने की भरसक कोशिश करता।


यदि मैं अध्यापक होता, तो प्रत्येक विदयार्थी की ओर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देता। मैं यथाशक्ति प्रयास करता कि उसके व्यक्तित्व का समुचित रूप से विकास हो। प्रत्येक विद्यार्थी के भीतर कोई न कोई विशेष प्रकार की क्षमता अवश्य रहती है।


 किंतु आज के भौतिकवादी युग में अधिकतर विद्यार्थियों को अपनी रुचि के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है, जिससे उनकी प्रतिभा कुंठित हो जाती है। यदि मैं अध्यापक होता, तो भरसक प्रयत्न करता कि विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा विकसित करने के समुचित अवसर मिल सकें।



आज के विद्यार्थी ही देश के भावी कर्णधार है। यदि वे अनुशासित एवं सदाचारी होंगे, तो देश के सुयोग्य नागरिक बनेंगे और देश की अधिकाधिक प्रगति हो सकेगी। यदि मैं अध्यापक होता, तो अपने विद्यार्थियों को परिवार, देश और विश्व के प्रति उनके कर्तव्य और जिम्मेदारी का बोध कराता। 


उनके सामने देश और विदेश की महान विभूतियों के उदाहरण रखकर उनमें त्याग और बलिदान की भावना जागृत करने का प्रयास करता। इस प्रकार, देश की नई पीढ़ी के चरित्र-निर्माण में योगदान देकर मैं अपना जीवन सार्थक बनाता।


आज चारों ओर धन का महत्त्व बढ़ रहा है। धन कमाने की दौड़ में अध्यापक बहत पीछे रह जाते हैं। तब सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने की लालसा में वे धन कमाने के लिए अनुचित उपाय भी अपनाने लगते हैं। यदि मैं अध्यापक होता, 


तो इस प्रकार के दोष से दूर रहता और अपने साथियों को भी इस प्रकार की प्रवृत्ति से दूर रहने के लिए प्रेरित करता। काश, मैं अध्यापक होता। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।