कुटीर उद्योग पर निबंध | kutir udyog par nibandh
नमस्कार दोस्तों आज हम कुटीर उद्योग पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। इस लेख मे कुल २ निबंध दिये गये हे जिन्हे आप एक -एक करके पढ सकते हे । जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। इसके अलावा यहाँ की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। इस विशाल जनसंख्यावाले देश में अधिक से अधिक लोगों को रोजगार देने की दृष्टि से कुटीर उद्योगों का बहुत महत्त्व है।
कुटीर उदयोग में काम करनेवाले लोग अधिकतर एक ही परिवार के होते हैं। इस उद्योग में ऊर्जा के रूप में बिजली का उपयोग कम से कम होता है। इसमें कम पूँजी लगानी पड़ती है और तैयार किया गया माल स्थानीय बाजार में ही बिक जाता है।
प्राचीन काल में भारत में कुटीर उद्योग बहुत विकसित थे। अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक भारत में बनी ढाके की मलमल, कश्मीरी शालें और गलीचे संसार भर में प्रसिद्ध थे। रेशमी कपड़े, हाथी दाँत के सामान, सोने के आभूषण, ताँबे-पीतल के बर्तन आदि बनाने के उद्योग देश भर में बहुत जोर-शोर से चल रहे थे।
भारत में बने सती-रेशमी वस्त्रों, शालों, गलीचों आदि की विदेशों में भी बहुत माँग थी। किंतु अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय माल को इंग्लैंड के मशीनों से बने सस्ते माल से स्पर्धा करनी पडी। अंग्रेजी सरकार की व्यापार नीति और अर्थ नीति भारतीय कुटीर उद्योग के लिए घातक सिदध हुई। इन कारणों से भारत के कुटीर उद्योगों का बहुत तेजी से ह्रास हुआ।
भारत जैसे कृषिप्रधान देश में कुटीर उद्योगों का विशेष महत्त्व है। यपि 'हरित क्रांति ' हो जाने से कृषि-उत्पादन बहुत बढ़ गया है और किसानों का रहन-सहन का स्तर भी ऊँचा उठा है, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग का महत्त्व बना हुआ है।
इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या तो बढ़ी है, पर उसके अनुपात में रोजगार नहीं बढ़े हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ती गई है। इस बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए हमारी सरकार कुटीर उद्योगों के विकास के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है।
कुटीर उद्योगों द्वारा लोगों को पूरे या आंशिक समय का काम मिलेगा, जिससे उनकी आमदनी बढ़ेगी और उनके रहन-सहन का दरजा भी ऊँचा होगा।
कुटीर उद्योग चलाने के लिए बहुत कम पूँजी की जरूरत होती है, इसलिए सरकार पर विशेष आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ेगा। इस उद्योग को चलाने के लिए साधारण तकनीकी जानकारी और स्थानीय कला-कौशल की ही जरूरत पड़ती है।
कुटीर उद्योग खेती के पूरक धंधे के रूप में भी लाभदायक साबित होते हैं। इस प्रकार, कुटीर उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को एक ठोस आधार प्रदान कर सकते हैं। .
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हाथ करघों पर कपड़ा बुनना, बेंत के सामान बनाना, बाँस की चीजें बनाना मधुमक्खी-पालन, मुर्गियाँ पालना, कालीन बनाना, कंबल बुनना आदि कुटीर उद्योग शुरू करने चाहिए।
अन्य उद्योगों में मिटटी के बर्तन बनाना, बढ़ईगिरी, लोहारी, तेल पेरना, चमड़े के सामान बनाना, रस्सियाँ बनाना, ईंटें बनाना आदि प्रमुख हैं। आभूषण बनाना, चमड़े के सामान बनाना, लकड़ी या हाथीदाँत के सामानों पर नक्काशी करना, पीतल के बरतन बनाना, खिलौने बनाना, रेशमी कपड़े बनाना आदि उद्योग शहरों में भी किए जा सकते हैं।
हमारे देश में कुटीर उद्योगों के विकास के मार्ग में कुछ अड़चनें भी आया करती हैं। प्रायः कुटीर उद्योगों के लिए कच्चे माल की नियमित रूप से आपूर्ति नहीं हो पाती अथवा उसे ऊंचे दामों पर खरीदना पड़ता है। आवश्यक पूँजी के अभाव में कुटीर उद्योगों के संचालकों को साहकारों अथवा दलालों की शरण लेनी पड़ती है।
पूँजी की कमी के कारण कुटीर उद्योगों को नए सुधारित यंत्रों का लाभ नहीं मिल पाता। इन उद्योगों में लोगों की बदलती रुचियों के अनुसार नए-नए फैशन की चीजें तैयार नहीं हो पातीं। तैयार माल के लिए बाजार मिलने में कठिनाई होती है।
बड़े-बड़े कारखानों में मशीनों पर तैयार किए गए सस्ते माल से इन्हें स्पर्धा करनी पड़ती है। इन अड़चनों के कारण कुटीर उद्योगों की संतोषजनक प्रगति नहीं हो पाती।
कुटीर उद्योगों के विकास के लिए उन्हें स्थिर एवं वैज्ञानिक आधार प्रदान करना होगा। हमें इनकी उत्पादन क्षमता एवं स्पर्धा-शक्ति बढ़ानी पड़ेगी। तब जाकर कुटीर उदयोग आर्थिक दृष्टि से स्वावलंबी बन पाएँगे और उनके उत्पादनों के माध्यम से इस देश के लोगों को अपना कला-कौशल दिखाने का मौका मिलेगा।दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।और आगे दिया हुआ दूसरा निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद ।
कुटीर उद्योग पर निबंध | kutir udyog par nibandh
भूमिका-भारत एक कृषि प्रधान देश है।
यहाँ पर प्रकृति ने गर्मी, बरसात और जाड़ा तीनों प्रकार की ऋतुओं को
स्वाभाविक रूप प्रदान किया है। इन ऋतुओं में गाँव के लोग अपना काम समय के
अनुसार करते हैं, किन्तु उनके पास कुछ समय खाली भी बचता है। उस समय का
पूर्व रूप से सदुपयोग नहीं हो पाता है।कुटीर-उद्योगों में पृष्ठभूमि की आवश्यकता हर एक कार्य के लिए पृष्ठभूमि आवश्यक होनी चाहिए। कुटिर उद्योगों की पृष्ठभूमि भारत में बहुत अधिक है। यहाँ की ग्रामीण जनता गरीब है किन्तु वह सन्तोष की भावना बनाए रखते हैं। समय के अनुसार वह काम से घबराते नहीं हैं।
कुटीर उद्योगों का स्वरूप-कुटीर उद्योग उन उत्पादक व्यवसायों को कहते हैं जो थोड़ी पूँजी से थोड़े स्थान में दो-चार आदमियों द्वारा ही चलाये जा सकें। जो उद्योग कुटिया में भी चल सके उसे कुटीर उद्योग कहा जाता है।
देश की अर्थव्यवस्था पर कुटीर उद्योग का प्रभाव-कुटीर उद्योग की प्रगति का प्रभाव जनता पर यह पड़ेगा कि उन्हें शिक्षा प्राप्त होगी। उनमें आत्मनिर्भरता आयेगी। वे अपने कार्य को सालों के लिए सही कर लेंगे। उनकी खेती को ऊपरी सहायता मिलने से खेती और कुटीर उद्योग दोनों एक-दूसरे के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे।