मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | man ke hare har hai man ke jite jit par nibandh

 

 मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध | man ke hare har hai man ke jite jit par nibandh

नमस्कार  दोस्तों आज हम  मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। इस कहावत में जीवन का एक महान सत्य प्रकट किया गया है। मनुष्य का मन ही उसकी सभी गतिविधियों का संचालन करता है। हमारे जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियाँ आती-जाती रहती हैं। यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हम अपना धीरज बनाए रखें, तो उन पर विजय पा सकते हैं। 



इसके विपरीत, यदि हम अधीर और निराश हो जाएँ, तो पास में हर प्रकार के साधन रहने पर भी हार ही हमारे हाथ लगेगी।



मनुष्य का जीवन खेल के मैदान के समान है। यहाँ हर व्यक्ति खिलाड़ी है। खेल में विजय प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी को चुस्त और तंदुरुस्त होने के साथ-साथ अपने-आप पर भरोसा भी होना चाहिए। जिसका मन मजबूत होता है, वही सच्चे अर्थों में तंदुरुस्त और अपने-आप पर भरोसा रखनेवाला होता है। 




खेल में कभी जीत होती है, तो कभी हार। इसी प्रकार, जीवन में कभी सफलता मिलती है, तो कभी असफलता। जिसका मन मजबूत होता है, वह अपनी हार से प्रेरणा लेता है।  उसकी हार, उसके स्वाभिमान को कुरेदती रहती है। 



वह लगातार सफलता पाने की कोशिश करता रहता है और अपनी हार को जीत में बदलकर ही चैन लेता है। इसके विपरीत, जिस व्यक्ति का मन कमजोर होता है, वह अपनी मामूली हार से भी घबराकर अपना धीरज खो देता है और हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाता है।



शिवाजी महाराज का जन्म एक मामूली जागीरदार परिवार में हुआ था। सारी परिस्थितियाँ उनके विपरीत थीं। फिर भी, उनके मन ने हार नहीं मानी। उन्होंने आदिलशाही सुल्तानों, पुर्तगालियों, मुगलों आदि शक्तिशाली शत्रुओं से लोहा लिया। अपने मन की प्रबल शक्ति से उन्होंने सारी बाधाओं पर विजय पाई और 'हिंदवी स्वराज्य' की स्थापना करके ही चैन लिया। 



जब महात्मा जोतिबा फुले ने महाराष्ट्र में स्त्री-शिक्षा के प्रचार और प्रसार का काम शुरू किया, तो उन्हें समाज के घोर विरोध का सामना करना पड़ा। किंतु उनका मन हार माननेवाला नहीं था। सभी प्रकार के अपमान सहन करते हुए भी, अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए वे संघर्ष करते रहे। 



अंत में उन्होंने महाराष्ट्र में स्त्री-शिक्षा की मशाल जलाकर सिद्ध कर दिया कि 'मन के हारे हार है, मन के जीते जीत !'

यह कहावत किसी व्यक्ति के जीवन की तरह किसी देश या राष्ट्र के बारे में भी सत्य सिद्ध होती है। किसी देश या राष्ट्र की सबसे बड़ी ताकत उस देश के निवासियों की प्रबल इच्छाशक्ति में रहती है।


दूसरे विश्वयुद्ध की भीषण ज्वाला में जापान का कला-कौशल, उद्योग-धंधे आदि पूरी तरह नष्ट हो गए थे। लेकिन देशभक्त जापानियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने मन की अजेय शक्ति से बहुत थोड़े समय में ही अपने देश का नवनिर्माण कर लिया और उसे संसार में चोटी का राष्ट्र बना दिया। 



ऐसे ही मनस्वी वीरों का अभिनंदन करती हुई कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं – 'हार भी तेरी बनेगी, मानिनी जय की पताका।' हार-जीत का असली रूप क्या है? जिस जीत से हम घमंड में फूल उठते हैं और अपनी प्रगति धीमी कर देते हैं,



वह वास्तव में हमारी हार की भूमिका ही होती है। जिस हार से प्रेरणा लेकर हम दूने उत्साह के साथ संघर्ष में लग जाते हैं, वह सच्ची विजय दिलानेवाली हार सिद्ध होती है। 



जैसे, रथ के पहिए की अराएँ बारी-बारी से ऊपर-नीचे आती-जाती रहती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में हार-जीत का क्रम लगा रहता है। हमें अपनी जीत पर खुशी से पागल नहीं होना चाहिए। 



इसी प्रकार, अपनी हार पर धीरज खोकर निराशा के सागर में डूब नहीं जाना चाहिए। हार और जीत, दोनों दशाओं में, हमें स्वाभाविक गति से अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना चाहिए। 



हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि 'इस पथ का उद्देश्य नहीं है, श्रांत भवन में टिक रहना, किंतु पहुँचना उस सीमा पर, जिसके आगे राह नहीं !' दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।