सुखी जीवन की मेरी कल्पना हिंदी निबंध | my idea of a happiness essay in hindi

 

 सुखी जीवन की मेरी कल्पना हिंदी निबंध |  my idea of a happiness essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  सुखी जीवन की मेरी कल्पना हिंदी निबंध  इस विषय पर निबंध जानेंगे। 

अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए सभी लोग दिन-रात परिश्रम करते रहते हैं। फिर भी बहुत कम लोग सुखी दिखाई देते हैं। इसके अलावा, हर आदमी की सुख की परिभाषा भी अलग-अलग होती है। 



कोई सोचता है कि बहुत-सा धन इकट्ठा कर लेने से वह सुखी हो जाएगा, तो कोई मानता है कि ज्यादा से ज्यादा ताकतवर बन जाने से ही उसका जीवन सुखी हो सकेगा। किसी की धारणा है कि कोई ऊँचा पद मिल जाने पर ही वह सुखी होगा, तो कोई विद्वत्ता को ही सुखी जीवन की आधारशिला मानता है।



सुखी जीवन की मेरी भी अपनी कल्पना है। मेरे विचार से जीवन को सुखी बनाने के लिए अपने आसपास कुछ भौतिक वस्तुओं का होना जरूरी तो है, लेकिन उनकी भरमार होना आवश्यक नहीं है। मैं उतनी ही वस्तुओं को एकत्र करना चाहता हूँ, जितनी मेरी कार्यक्षमता बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।


 मेरी कल्पना के अनुसार जीवन को सुखी बनाने के लिए उत्तम स्वास्थ्य बहुत जरूरी है। संसार में धन का बड़ा महत्त्व है। सुख से जीवन जीने के लिए धन की बहुत जरूरत पड़ती है। किंतु मानवीय गुणों को छोड़कर केवल धन के पीछे ही नहीं दौड़ना चाहिए।


हमारे यहाँ धन की देवी लक्ष्मी को चंचला' कहा गया है। इसका तात्पर्य है कि कोई भी व्यक्ति हमेशा धनवान नहीं बना रहता। जब वह निर्धन हो जाता है, तो लोग उसकी उपेक्षा करने लगते हैं।



मेरे विचार से उसी व्यक्ति का जीवन सुखी है, जो इतना धन कमा ले, जितने से उसकी जरूरतें पूरी हो सके और वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारियाँ निभा सके। इस बारे में मैं संत कबीर के इस दोहे को आदर्श मानता हूँ

साईं इतना दीजिए, जामें कुटुम समाय। मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।



 मेरी धारणा के अनुसार उसी व्यक्ति का जीवन सुखी होता है, जो अपने व्यक्तित्व का पूरा विकास कर पाता है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ जन्मजात गुण होते हैं। इन गुणों का पूर्ण विकास कर लेनेवाला व्यक्ति ही अपने समाज और देश की प्रगति में योगदान कर सकता है।



किंतु इन गुणों का विकास संघर्ष के वातावरण में ही हो पाता है, सुख और विलासिता में नहीं। इसी तथ्य की ओर संकेत करते हुए एक कवि ने कहा है-'फूल काँटों में खिला था, सेज पर मुरझा गया ! ' मेरे विचारानुसार उसी व्यक्ति का जीवन पूर्ण रूप से विकसित होता है, जिसके जीवन में थोड़ा-बहुत संघर्ष हमेशा बना रहता है।



जीवन को सुखी बनाने के लिए परोपकार का मार्ग अपनाना बहुत जरूरी है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि इस संसार में परोपकार से बढ़कर दूसरा धर्म और परपीड़न से बढ़कर दूसरा पाप नहीं है (परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।)। 



जो लोग दूसरों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और उनके सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझते हैं, वे ही सुखी रहते हैं। इसी धारणा का समर्थन करते हुए 'प्रसाद 'जी कहते हैं औरों को हँसते देखो, मनु-हँसो और सुख पाओ,




अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुखी बनाओ। मनुष्य के जीवन में सुख और दुःख दोनों आते-जाते रहते हैं। सुख के क्षणों में लोग प्रायः आनंद से प्रफुल्लित हो उठते हैं और दुःख आने पर व्याकुल हो जाते हैं। 


मेरा दृढ़ विश्वास है कि उसी व्यक्ति का जीवन सुखमय है, जो यह जानता है कि दुःख की अँधेरी रात के बाद सुख की सुनहली सुबह अवश्य आएगी। ऐसा व्यक्ति सुख और दुःख, दोनों का समान रूप से स्वागत करता है।



मे उसी व्यक्ति का जीवन सुखी मानता हूँ, जो नए विचारों का स्वागत करन कलिए हमेशा तैयार रहता है। इस संसार में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।



जो लोग पुरानी परंपराआ का गले लगाए रहते हैं और नवयुग का स्वागत नहीं करते, वे जल्दी ही बासी फूलों की तरह धूल में मिल जाते हैं। परिवर्तन के कारण ही संसार में हमेशा नवीनता बनी रहती है और उसी से अनोखा आनंद मिलता है। 


अत: सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए हमें परिवर्तन का स्वागत करने हेतु सदैव तैयार रहना चाहिए।

मेरे विचारानुसार उसी व्यक्ति का जीवन सुखी है जो मानव-मानव को समान समझता है और द:खी मानव की सेवा के लिए अपना तन-मन-धन समर्पित कर देता है। 



ससार म उसा का नाम अमर होता है, जो मानवता के कल्याण के लिए कोई महान कार्य करता है। सुखा जीवन के बारे में मेरी यही कल्पना है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।