सब दिन होत न एक समान पर निबंध | sab din hot na ek saman essay in hindi

 

सब दिन होत न एक समान पर निबंध | sab din hot na ek saman essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम सब दिन होत न एक समान  इस विषय पर निबंध जानेंगे। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में हमेशा परिवर्तन होता रहता है। परिवर्तन ही जीवन का मूलमंत्र है। 'सबै दिन होत न एक समान', इस उक्ति में इसी सत्य की ओर संकेत किया गया है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में हमेशा एक-सी स्थिति नहीं रहती।


सुख की चाँदनी रात के बाद दु:ख की अँधियारी रात का आगमन होता है। इसी प्रकार दुर्दिन के पश्चात् सुदिन का आना भी निश्चित होता है। इस सत्य को भूलकर जब कोई दुःख के दिनों में अधीर हो उठता है, तब उसके शुभचिंतक उसे सांत्वना देते हुए कहते हैं- 'सबै दिन होत न एक समान।'



जड़ हो या चेतन, सबके ऊपर यह उक्ति लागू होती है। सारी प्रकृति इस विधान का अनुसरण करती दिखाई देती है। ग्रीष्म की प्रखर धूप के बाद वर्षा की शीतल फुहार आती है। वर्षा के बादलों से घिरे आकाश का स्थान शरद का स्वच्छ नील गगन लेता है। बचपन का अल्हड़पन किशोरावस्था की आत्मलीनता में बदल जाता है।




कुछ समय बाद यही किशोर स्वाभिमानी युवक बन जाता है। शीघ्र ही युवक एक जिम्मेदार प्रौढ़ के रूप में दिखाई देने लगता है। प्रौढ़ावस्था वृद्धावस्था में बदलती है और अंत में एक दिन चुपके से आकर मृत्यु इस जीवनरूपी नाटक पर परदा गिरा देती है। इस प्रकार सृष्टि में परिवर्तन का अखंड क्रम चलता रहता है।




समय का चक्र लगातार घूमता रहता है। उसके प्रभाव से राजा को रंक और दरिद्र को लक्ष्मी का कृपापात्र बनने में देर नहीं लगती। व्यक्तियों के जीवन की ही तरह राष्ट्रों के जीवन में भी परिवर्तन होते रहते हैं।



जिस विशाल ब्रिटिश साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था, वही आज एक छोटे-से द्वीप समूह के रूप में सिमट गया है। जो सोवियत संघ संसार की महाशक्तियों में अग्रगण्य था, वही आज कई टुकड़ों में विभाजित होकर अपनी पूर्व गरिमा खो बैठा है। 



द्वितीय विश्वयुद्ध की भीषण ज्वाला में जिस जापान का सर्वस्व भस्मीभूत हो गया था, वही आज संपन्नता के शिखर पर आरूढ़ होकर विश्व के देशों का सिरमौर बना हुआ है। ये चमत्कारी परिवर्तन देखकर अनायास मुँह से निकल पड़ता है'सबै दिन होत न एक समान।'




परिवर्तन का यह अखंडित क्रम देखकर हमें उत्साहपूर्वक कार्य करते रहना चाहिए। हर व्यक्ति के जीवन में उत्कर्ष का समय जरूर आता है। इसी प्रकार, उन्नति के शिखर पर पहुँचने के बाद उसके पतन का भी क्षण आ सकता है। यदि इस प्रकार परिवर्तन न होता रहे, तो विश्व में जड़ता आ जाए। 


परिवर्तन के इसी अखंडित क्रम का स्वागत करते हुए, 'प्रसाद 'जी कहते हैं – 'नित्य नूतनता का आनंद, किए है परिवर्तन में टेक।' यदि परिवर्तन की धारा रुक जाए और सभी दिन एक जैसे बने रहें, तो चारों ओर पुरानेपन का ही साम्राज्य दिखाई देने लगे और नई पीढ़ी को विकास का अवसर ही न मिले। 



एक अवधि के बाद पुरानी पीढ़ी अपना लचीलापन खो बैठती है और नए विचारों का स्वागत करने में असमर्थ हो जाती है। तब उसके लिए अनिवार्य हो जाता है कि परिवर्तन के आगे सिर झकाते हुए वह नई पीढ़ी के लिए जगह खाली कर दे।



अवनति से हताश होकर हमें अपनी प्रगति नहीं रोकनी चाहिए। हमें सुख-दुःख को समान समझते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहना चाहिए। मनुष्य के चेहरे पर कभी हँसी खेलती है, तो कभी आँसुओं की धारा बहती है। उचित यही है कि परिवर्तन की अखंडित धारा को स्वीकार करते हुए हम अपने कर्तव्य-पथ पर हमेशा आगे बढ़ते रहें, क्योंकि- 'सबै दिन होत न एक समान।'दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।