यदि परीक्षाएं न होती हिंदी निबंध | yadi parikshaa na hoti to hindi nibandh
नमस्कार दोस्तों आज हम यदि परीक्षाएं न होती हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। 'परीक्षा' शब्द ही हमारे मन में एक प्रकार का भय पैदा कर देता है। यद्यपि प्राचीन काल से ही किसी न किसी रूप में परीक्षाएँ ली जाती रही हैं और भविष्य में भी ली जाती रहेंगी, किंतु उनका भय पूर्ववत बना हुआ है। अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने वर्तमान परीक्षा-प्रणाली के दोषों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है,
किंतु वे कोई उचित विकल्प नहीं सुझा सके हैं। ऐसी स्थिति में यह कल्पना बड़ी मनोरंजक है कि यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो क्या होता?
यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो अधिकतर विद्यार्थियों की खुशी की कोई सीमा न रहती। उन्हें मन लगाकर पढ़ाई करने से छुटकारा मिल जाता। अपने अभिभावकों के दबाव के कारण वे विद्यालय जाते अवश्य, लेकिन अध्ययन की ओर ध्यान न देते। वर्ष के अंत में वे ऊपर की कक्षा में अपने-आप चले जाते।
इसलिए वे अपना अधिकांश समय गपशप करने, टेलीविज़न देखने आदि कामों में बिताते। खेल के मैदानों, सिनेमाघरों, वीडियो गेम्स के पार्लरों, घूमने-फिरने के स्थानों आदि में विद्यार्थियों की भीड़ बढ़ जाती। विद्यार्थी नीरस विषयों का अध्ययन करने की झंझट से मुक्त हो जाते। वे दूने उत्साह से अपने प्रिय अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों के बारे में जानकारी एकत्र करने में जुट जाते।
यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो प्रतिभाशाली एवं परिश्रमी विद्यार्थी नाराज और दु:खी होते। परीक्षाएँ बंद हो जाने से उन्हें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के अवसर न मिलते। दिन-रात अध्ययन करना, पुस्तकालयों में बैठकर संदर्भग्रंथों के पन्ने उलटना, शिक्षकों से अपनी जिज्ञासाएँ शांत करने के लिए प्रश्न पूछना, सब कुछ समाप्त हो जाता।
परीक्षा में सराहनीय सफलता प्राप्त करने के उपलक्ष्य में न तो उनका कोई अभिनंदन-समारोह आयोजित किया जाता और न ही उन्हें कोई पुरस्कृत करता। पढ़ने-लिखने में फिसड्डी विद्यार्थी 'किताबी कीड़े' कहकर उन्हें चिढ़ाते और वे मन मसोसकर रह जाते।
यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो कुछ अध्यापक भी बहुत प्रसन्न होते। कक्षा में पढ़ाने के लिए तैयारी करने से उन्हें छुट्टी मिल जाती। परीक्षा में उत्तीर्ण होनेवाले विद्यार्थियों के प्रतिशत के आधार पर उनके अध्यापन कार्य का मूल्यांकन न किया जाता।
उन्हें प्रश्नपत्र बनाने तथा उत्तर पुस्तिकाएँ जाँचने से छुटकारा मिल जाता। इससे उनके आनंद की सीमा न रहती। हाँ, उन अध्यापकों को जरूर दुःख होता, जो प्राइवेट ट्यूशनों से पर्याप्त आय कर लेते हैं।
यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो अभिभावकों की स्थिति विचित्र हो जाती। जिनके पुत्र-पुत्री या पाल्य मेधावी होते, वे चिंतित हो जाते। उनकी संतानों-पाल्यों को अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसर न मिलते। पर जिन अभिभावकों की संतानें सामान्य या मंदबुद्धि की होतीं, वे बहुत प्रसन्न होते।
परीक्षाएँ समाप्त हो जाने से उन्हें न तो अपनी संतानों के भविष्य के बारे में कोई आशंका रहती और न ही उन्हें प्राइवेट ट्यूशनों के लिए पैसे खर्च करने पड़ते। हाँ, परीक्षाएँ बंद हो जाने से जब विद्यार्थी अनुशासनहीन होकर उपद्रव करने लगते, तो सभी अभिभावक व्याकुल हो उठते।
यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो शिक्षा विभाग के परीक्षा-बोर्ड बंद हो जाते। उनमें काम करनेवाले हजारों लोग बेकार हो जाते। ऊँचे पदों पर कार्य करने के लिए सुयोग्य व्यक्तियों का चुनाव करना कठिन हो जाता। सिफारिशों के बल पर अयोग्य व्यक्ति महत्त्वपूर्ण पदों पर आसीन हो जाते।
प्रशासन-व्यवस्था चरमरा उठती और देश भर में अराजकता फैल जाती। प्रगति और विकास की सारी योजनाएँ ठप पड़ जाती और देश आदिम युग में लौट जाता।
किंतु इस प्रकार की कल्पना सर्वथा निराधार है। परीक्षाएँ होती रहेंगी, वे कभी बंद नहीं होगी। फिर भी, यह कल्पना है बड़ी मनोरंजक कि यदि परीक्षाएँ न होतीं, तो...! दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।