वृक्षारोपण हिंदी निबंध | essay on tree plantation in hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम वृक्षारोपण हिंदी निबंध इस
विषय पर निबंध जानेंगे। प्राचीन काल से मानव की दैनिक आवश्यकताओं की
पूर्ति करने वाला वृक्ष आज भी मानव जीवन और समाज के अस्तित्व में
महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वृक्ष न केवल हमारे जीवन को प्रभावित करते
हैं अपितु हमारे समग्र अस्तित्व को बनाए रखने के संजीवनी भी प्रदान करते
हैं।
वृक्षों से जहां हमें ईंधन, मकान, चारा प्राप्त होता है, वहीं
ये विभिन्न रूपों में सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा में अपना महत्वपूर्ण
योगदान भी करते हैं। भूमि, जल-संरक्षण में वृक्षों का योगदान महत्वपूर्ण
है। सूखे व बाढ़ की विभीषिका को रोकने, भूस्खलन तथा भूमि को नम बनाये रखने
के लिए वृक्षों की उपादेयता है।
उपहिमालीय क्षेत्र के अनेक स्थानों में देवदार, पाडर, बांस, चीड़, काफल तथा
बांस एवं लुगदी देने वाले वन तथा निडाल की झाड़ियों में जंगल जमीन में जल
ग्रहण करने की क्षमता बनाये रखने में बेजोड़ हैं। इसके इर्द-गिर्द अनेक
बहुउपयोगी टेरोडोफाइट्स और ब्रायोफाइटस मिलते हैं। इन वृक्षों के हरा-भरा
होने से जंगल में हरियाली तथा घास की मात्रा और गुणवत्ता में वृद्धि होती
है।
रोगों को नष्ट करने हेतु प्राणदायिनी एलोपैथी और आयुर्वेदिक दवाइयों
में वृक्षों के फूल, फल, छाल, पत्ते तथा जड़ों का उपयोग किया जाता है।
स्वादिष्ट फल, सुगन्धित पुष्प तथा शरीर ढकने के लिए वस्त्र, लकड़ी और आवास
के लिए आज भी मानव इन पर आश्रित है। वृक्ष एवं पशु-पक्षियों को एक-दूसरे का
पर्याय कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। जहां वृक्षों की हरियाली है, वहीं
पक्षियों का कलरव है। पक्षी वृक्षों पर अपना घोंसला बनाकर एक परिवार के रूप
में निवास करते हैं। पशु तो वनों में स्वच्छंद विचरण करना पसन्द करते
हैं।
बंदिश लगने पर या वनों से अलग होते ही ये पशु हिंसक हो जाते हैं।
इसलिए सरकार ने इन पशु-पक्षियों के लिए नागरिकों में इनके प्रति प्रेम
उत्पन्न करने के लिए चिड़िया-घर और जन्तु विहार बनवाये हैं। यहां
पशु-पक्षियों को उनके अनुकूलित वातावरण में रखा जाता है। चिड़ियाघर को
वृक्षों से हरा-भरा बनाया जाता है और जल का पर्याप्त प्रबन्ध किया जाता है।
इस अनुकूलित वातावरण में रहकर जन्तु अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति का बनकर
अपना जीवन यापन करना है।
पृथ्वी, अप, तेज, आकाश और वायु पंचतत्व हैं। इनमें
से वायु सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि शुद्ध वायु के बिना मानव जीवन
की कल्पना करना ही व्यर्थ है और यह शुद्ध वायु हमें मिलती है वृक्षों से।
ये वृक्ष पृथ्वी के समस्त जीवधारियों के जीवन का स्तम्भ हैं। ये वृक्ष
हमारी अनेक दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ कार्बन डाइआक्साइड,
नाइट्रस आक्साइड और सल्फर डाईआक्साइड जैसी जहरीली गैसों को आत्मसात कर
जीवनदायिनी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
दोहरी भूमिका निभाने वाले इन वृक्षों में प्रदूषण कम करने की भी
अद्भुत क्षमता है। एक अनुमान के अनुसार किसी भी औद्योगिक इकाई के चारों ओर
500 मीटर चौड़ी वृक्षों की हरित पट्टी वातावरण में सल्फरडाई ऑक्साईड की
सांद्रता को 70 प्रतिशत और नाइट्रस ऑक्साइड की सांद्रता को 67 प्रतिशत कम
कर सकती है। वातावरण से जहरीली गैसों को सोखने के साथ-साथ उद्योगों को
चिमनियों से निकलने वाले धुयें तथा राख के कणों को सीमा क्षेत्र में ही
नियन्त्रित रखने की क्षमता है। वातावरण सुरक्षित, शीतल और सुगन्धित बनाने
के लिए वृक्षों की सघन एवं हरी पत्तियों में ध्वनि प्रदूषण को कम करने की
भी असाधारण क्षमता है।
वृक्षों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-पुष्प,
छायादार और फल वृक्ष। इन तीनों प्रकार के वृक्षों का एक ही उद्देश्य
है-मानव का कल्याण करना। पुष्प न केवल हमारे परिवेश को सुन्दर बनाते हैं
अपितु वायु को सुगन्धित कर शान्ति और आनन्द का ऐसा वातावरण रच देते हैं कि
मानव भावविभोर हो उठता है। जो इन पुष्पों को तोड़ता है वह निश्चय ही
प्रस्तर हृदय होगा। श्री मन्नारायण अग्रवाल के शब्दों में
फूल न तोड़ो, ए माली तुम, भले, डाल पर मुरझाएं।बना नहीं सकते जिनको हम,तोड़ उन्हें क्यों मुस्काएं।
इतिहास में हमें ऐसे राजाओं के नाम मिलते हैं, जिन्होंने वृक्षारोपण किया। सम्राट अशोक ने सड़क, नदियों, तालाबों के किनारे छायादार और फलदार वृक्ष लगवाये थे। शेरशाह सूरी ने सड़कों के किनारे छायादार और फलदार वृक्ष लगवाये थे। शाहजहां ने कश्मीर में "शालीमार" और "निशात'' बाग लगवाये।
वृक्षों की उपादेयता हमारे शास्त्रों में भी वर्णित है। एक वृक्ष को दस पुत्रों के समान माना गया है और साथ ही चेतावनी भी दी है कि
क्रियते पत्र विच्छेदः सपुष्पः फलिन: तरोः।अनावृष्टि भयं घोरं तस्मिन् देशे प्रजायते॥
(अग्नि पुराण) अर्थात् जिस देश में फूल और फल वाले वृक्षों को काटा जाता है, उस देश में भयंकर सूखा पड़ने का खतरा बन जाता है।
हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति वृक्षों की पोषक,
संरक्षक और पूजनीय रही है। यहां वृक्षों को भी देवत्व प्रदान किया गया।
वृक्षों की शीतल छाया में ही ऋषि-मुनियों ने ज्ञानार्जन और तपस्या की और
गौतम बुद्ध को भी आत्मिक ज्ञान वृक्ष के नीचे ही प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण की
लीला और बांसुरी का मधुर संगीत भी गोकुल और वृंदावन के वृक्षों और लताओं
के बीच ही हुआ था।
वर्तमान में मानव दिन-प्रतिदिन वृक्षों को काटता गया
लेकिन उन्हें रोपना भूल गया। हरे-भरे जंगलों को उसने उजाड़ डाला और आज यह
विकट समस्या बन गई है। वृक्षारोपण के प्रति जनमानस में जागृति उत्पन्न करने
के उद्देश्य से 1950 में भारत सरकार के तत्कालीन खाद्य मंत्री श्री के.एम.
मुंशी ने वृक्षारोपण अभियान वनमहोत्सव' के रूप में शुभारम्भ किया। तब से
आज तक इसे एक पर्व के रूप में हम मनाते चले आ रहे हैं।
मानव सृष्टि का श्रेष्ठ और विवेकशील प्राणी है। अत:
उसका वृक्षों के प्रति निर्दयतापूर्ण व्यवहार सुन्दर नहीं कहा जा सकता है,
जबकि वह स्वयं सुन्दरतम है। हमारे स्वास्थ्य और सुरक्षा हेतु खड़े वृक्ष
हमारे जीवनदाता हैं। हमें चाहिए कि हम पुराने वृक्षों की देखभाल करें और
प्रतिवर्ष अधिकाधिक वृक्षा लगायें। ऐसा करके हम अपने देश में रेगिस्तानीकरण
और सूखा जैसी समस्याओं का अन्त कर सकते हैं। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा
लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।