एक बाढ़पीड़ित की आत्मकथा हिंदी निबंध | Autobiography of Flood Victim Essay in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम एक बाढ़पीड़ित की आत्मकथा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। इस लेख मे कुल २ निबंध दिये गये हे जिन्हे आप एक -एक करके पढ सकते हे । मझे पत्थर तोड़ते देखकर आपको अचरज हो रहा है न? मैं ठीक से गिटटी नहीं तोड़ पा रहा हूँ- यही कहना चाहते हैं न आप? क्या करूँ? दिनों के फेर से मो यह काम करना हा। नहीं तो, मैं भी एक खाते-पीते परिवार का सदस्य था। क्या. आप मेरी आपबीती सुनना चाहते हैं ? ठीक है, सुनिए।
मेरा नाम रामनारायण है। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले के छोटे-से गाँव में हुआ था। मेरा गाँव गोमती नदी के किनारे स्थित है। मेरे पिताजी किसान थे। मेरी माँ धार्मिक विचारोंवाली महिला थीं। मेरे एक बड़े भाई भी हैं। पिताजी ने उनको खूब पढ़ायालिखाया। लेकिन जब उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई, तो अपने बीबी-बच्चों को लेकर वे शहर चले गए। इसलिए क्षुब्ध होकर पिताजी ने हाईस्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद मेरी पढ़ाई बंद करवा दी और मुझे खेती-बारी के काम में लगा दिया।
जल्दी ही उन्होंने मेरा विवाह भी कर दिया और मैं पूरा गृहस्थ बन गया। से भी, खेती-बारी के काम में मेरा मन खुब लगता था। किसी चीज की कमी नहीं थीं और जिंदगी की गाड़ी बँधे हुए ढर्रे पर चलती जा रही थी। अब मैं पिता भी बन गया था। . मेरे एक बेटा और एक बेटी थी।
एक साल बरसात के दिनों में, मेरे माता-पिता बीमार पड़ गए। कुछ दिनों बीमार रहकर दोनों परलोक सिधार गए। अब गृहस्थी का सारा बोझ मेरे कंधों पर आ पड़ा। गोमती नदी अपनी विनाशकारी बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध है। इस वर्ष बाढ़ का प्रकोप पिछले वर्षों की अपेक्षा अधिक भयानक था।
सावन का महीना था। लगातार सात दिनों से मूसलाधार वर्षा हो रही थी। सूर्य भगवान के दर्शन भी नहीं हो पाते थे। गोमती अपने पूरे उफान पर थी। मेरा गाँव चारों ओर से बाढ़ के जल से घिर गया था। आस-पास के गाँवों से हमारा संबंध टूट चुका था।
गाँव के चारों ओर खाइयाँ खोदकर सुरक्षा का प्रबंध किया जा रहा था। सभी लोग धड़कते हृदय से बाढ़ उतरने के लिए ईश्वर की प्रार्थना कर रहे थे। नदी की तेज धारा हमारे सुरक्षा-प्रयत्नों का मजाक उड़ाती हुई गर्जना करती बह रही थी। धीरे-धीरे दिन बीत गया और शाम हो गई।
अँधेरा होते ही सब लोग खा-पीकर अपने-अपने घरों में दुबक गए। केवल मैं अपने कुछ साथियों के साथ बाढ़ की स्थिति पर नजर रखने के लिए गाँव के चारों ओर घूमता रहा। हम लोग आधी रात तक जागते रहे। फिर थककर हम सब अपने-अपने घरों में जाकर सो गए।
सुबह चार बजे का समय रहा होगा। बड़े जोर का शोर सुनकर मैं जाग पड़ा। लगता था, जैसे कई रेलगाड़ियाँ एक-साथ दौड़ रही हों। स्त्रियाँ, बच्चे, बूढ़े, सभी भयानक रूप से चीख रहे थे। गोमती की बाढ़ का जल हम लोगों द्वारा बनाई खाइयाँ, मेंडे वगैरह ढहाता हुआ गाँव में घुस आया था। मेरा घर कुछ ऊँचाई पर था। इसलिए बचा हुआ था। शेष गाँव पूरी तरह पानी में डूब चुका था।
जब सूरज निकला, तो देखा कि गाँव का नामनिशान तक मिट चुका था। प्रायः सभी घर कच्चे थे। वे सब धराशायी होकर पानी में विलीन हो चुके थे। लगभग सारे मवेशी बह गए थे। संतोष यही था कि गाँव के लोगों में से किसी की जान नहीं गई थी।
अनेक परिवारों ने सर पर बने मंदिर और स्कूल में शरण ली थी। कई लोगों ने तो पडो पर चढकर बचाई थी। जिसे जहाँ शरण मिली. वहीं उसने आश्रय लिया। लीकन अनाज, कपड़े, रुपया-पैसा, बरतन वगैरह सभी कुछ बाढ़ में बह गया था।
फिर आई सरकारी सहायता ! मोटरबोट और नावों से मिट्टी का तेल, नमक और वरह बाटा जाने लगा, लेकिन उससे क्या होता? लाचार होकर मैंने जन्मभूमि को नमस्कार किया और परिवार के साथ इस शहर में आ पहँचा। खेती-बारी के अलावा और कोई काम तो मैं जानता नहीं, इसलिए यहाँ सड़क के किनारे बैठा गिट्टी तोड़ रहा हूँ।
अच्छा, अब चलूँ, हथौड़ा उठाऊँ। ठेकेदार आता ही होगा। मुझे बातें करते देख लेगा, तो आज की मजदूरी मारी जाएगी। आपने मेरी आपबीती सुनी, इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए । और आगे दिया हुआ दूसरा निबंध पढ़ना मत भूलियेगा धन्यवाद ।
निबंध 2