भाग्य और कर्म पर निबंध | bhagya aur karma par nibandh

 

भाग्य और कर्म पर निबंध | bhagya aur karma par nibandh 


नमस्कार दोस्तों आज हम भाग्य और कर्म पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। भूमिका-मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता होता है। चाहे तो वह आकाश से तारे तोड़ लाए, चाहे पृथ्वी के वक्षस्थल को तोड़कर पाताल लोक में ले जाये और चाहे तो पृथ्वी को राख बनाकर उड़ा दे। उसका भविष्य उसकी मुट्ठी में होता है। प्रयत्न करने पर क्या नहीं हो सकता!


यह सभी बातें हम प्राचीन काल से सुनते चले आ रहे हैं और इन्हीं बातों को सोचकर कर्म करते हैं, परन्तु अचानक ही मन में यह विचार आ जाता है कि क्या हम जो कुछ भी करते है वह हमारे वश की बात है? क्या निरन्तर प्रयत्न करने पर जो चाहे वह हो सकता है? जवाब मिला नहीं। हम कर्म करते हैं परन्तु उसका फल कोई और देता है। कर्म हम करते हैं और फल ईश्वर देता है। 


यह भाग्य की विचारधारा कही जाये या आस्तिक विचारधारा, परन्तु इसमें नाम मात्र भी सन्देह नहीं कि बड़े-बड़े नास्तिक का एक दिन ऐसा भी आता है कि वह भाग्यवादी बन जाता है। जब काल अपना भयानक मुख फाड़े हुए सामने आता है तो करोड़ों व्यक्तियों को मौत के बन्धन से बचाने वाला डॉक्टर भी उसके आगे पराजित हो जाता है, यह विधि का खेल नहीं तो और क्या है? निरन्तर मौत पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करने वाला जीवशास्त्री भी एक दिन स्वयं मौत के चंगुल में फंस जाता है, यह तो ईश्वर का ही खेल है।


जीवन में लाभ-हानि का महत्व-हमारे जीवन में हमें कब हानि होगी और कब लाभ, हम नहीं जानते। कब किसकी मृत्यु होगी, यह कोई नहीं जानता। किसको यश मिलेगा और किसको अपयश, इस बारे में किसी को भी ज्ञान नहीं होता। यह सब बातें विधि के ही हाथ में हैं। जो कुछ भी विधाता ने हमारे लिए जीवन में लिख दिया है वही हमें मिलेगा। इससे अधिक और कुछ भी नहीं मिलेगा। हमारी बात तो रहने दीजिए बड़े-बड़े महापुरुषों का भी एक दिन ऐसा आता है कि वे हतप्रभ, निरूपाय और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। उन्हें यह ज्ञान हो जाता है कि सभी साधन उपलब्ध होते हुए भी हम कुछ नहीं हैं।


हानि-लाभ विधि हाथ-हम जानते हैं कि किस कार्य को करने से हमें लाभ मिलेगा और किसे करने से हानि। महापुरुष राम जिनकी सीता जैसी पत्नी और लक्ष्मण जैसा भाई है, जिनके राजतिलक की विधि श्रेष्ठतम ज्ञानियों ने बहुत सोच-समझकर निकाली है, वही राम विधि के विधान से क्षण भर में अपने राज्य को खो देते हैं। वह नवयुवक जिसे राज-सिंहासन की प्राप्ति होने वाली थी, वनवासी बन जाता है। सीता जैसी सुकुमारी को वन में भ्रमण करना पड़ा, लाभ होने के बजाय उन्हें यह हानि उठानी पड़ी।


कब हमें लाभ होगा, इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कह सकते। लोगों की घर बैठे ही लॉटरी निकल जाती है। यह सब भाग्य का ही तो खेल है। पानी छिड़कने वाला एक भिश्ती एक दिन अकस्मात् ही बादशाह हुमायूं की रक्षा करता है और एक दिन के लिए भारतवर्ष का बादशाह बन जाता है। यह सब विधि का ही विधान है। पर विधान को देखकर मानव स्वयं यह सोचने लगता है कि उसके पास क्या शक्ति है? उसके तो सभी कार्य में भाग्य ही आगे चल रहा है।


जीवन में यश-अपयश का महत्व-यश और अपयश विधाता की मुट्ठी में बन्द होता है। जब चाहे वह यश देता है और जब चाहे अपयश। इन्द्र ने न जाने कितनी बार अपना सिंहासन पट खोकर अपयश पाया। गौतम की पत्नी अहिल्या के प्रेम में पड़कर उनकी बड़ी निन्दा हुई, परन्तु वह आज भी देवराज इन्द्र कहलाते हैं। बचपन में महात्मा गांधी को देखकर कौन यह कह सकता था कि दुबला-पतला साधारण बुद्धि वाला बालक एक दिन राष्ट्रपिता कहलायेगा। उनकी जय-जयकार सभी देशों में होगी और सब उसे 'बापू' के नाम से पुकारेंगे।


अब अपयश के क्षेत्र में विधाता की करनी का दृष्टिपात करते हैं। रूस को उन्नति के शिखर पर पहुँचाने वाला स्टालिन अपनी मृत्यु के पश्चात्-अपयश का भागी हुआ परन्तु धीरे-धीरे आज फिर उनका यश अर्थात् सम्मान हो रहा है। इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो के जीवन की कहानी एक अजीब ही कहानी है। एक समय ऐसा था जब सुकर्णों को स्वतन्त्रता की लड़ाई का नेता समझा जाता था और इण्डोनेशिया के स्वतन्त्र होने के पश्चात् वह वहां का राष्ट्रपति भी बना। 


चारों ओर उसकी जय-जयकार का यश फैला हुआ था, परन्तु भाग्य की एक ठोकर ने उसे अपयश का भागी बना दिया। आज इण्डोनेशिया में प्रेसिडेण्ड सुकर्णो को कोई पूछता भी नहीं है। इस प्रकार यश और अपयश विधि के हाथ में है।


जीवन-मरण तथा उसका महत्व-जीवन और मरण भी विधाता के ही हाथ में है। कोई नहीं जानता कि कब किसको जीवन मिलेगा और कब किसकी मृत्यु होगी? अनेक व्यक्ति कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रह जाते हैं। प्रहलाद को मारने के लिए कितने ही प्रयत्न किये गये। उसे पहाड़ से नीचे गिराया गया, हाथियों के पैरों तले फेंक दिया गया, चिता में जीवित जलाया गया परन्तु उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। अन्त में हिरण्यकश्यप का ही वध हुआ। उसके सारे वरदान धरे रह गए और वह मौत की आगोश में चला गया। 


कुछ समय पूर्व समाचार-पत्रों में यह खबर प्रकाशित हुई थी कि चलती गाड़ी के डिब्बे के शौचालय में एक स्त्री ने बालक को जन्म दिया। बालक गिरकर पटरियों के बीच जा पड़ा। सारी गाड़ी इस नन्ही-सी जान के ऊपर से गुजर गई परन्तु उसको कुछ भी नहीं हुआ।


अब हम मरण की बात पर विचरण करते हैं। हमने ऐसी अनेक घटनाएं सुनी होंगी कि लोग सोते-सोते मर गए, चलते-चलते मर गए, खाना-खाते मर गए। अपनी मृत्यु का तो हमें पता नहीं कि वह कब आ जाए। भारत के प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री श्री अयूब खाँ से बातचीत करने रूस गये। दोनों में वार्तालाप हुई और ताशकन्द प्रसिद्ध समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए। कौन जानता था कि इतना महत्वपूर्ण कार्य करने के बाद शास्त्रीजी मृत्यु के काल में समा जाएंगे। 


किसको पता था कि भारत के इस सपूत की मिट्टी ही भारत आएगी। प्रार्थना भवन से चलते समय किसने सोचा था कि राष्ट्रपिता गांधीजी पुनः प्रार्थना करने कभी नहीं आयेंगे। कुछ समय पूर्व हमने यह खबर सुनी थी, एक व्यक्ति चाय की दुकान पर चाय पीते-पीते मर गया। यह सब भाग्य का खेल नहीं तो और क्या है? स्थिति को देखकर नियति मुस्कुराती है और कहती है कि क्षुद्र मानव तू अपने को बड़ा शक्तिशाली समझता है। तुझसे भी अधिक शक्तिशाली एक तेज है, वह है मेरा विधि-विधान, उसके आगे तेरी एक नहीं चलती।


उपसंहार-इन समस्त बातों से यही बात समझ में आती है, 'मनुष्य बली नहिं होत' है, समय होत बलवान' और 'करम गति टारे नाहिं टरी' । जीवन में सुख-दुःख, यश-अपयश, लाभ-हानि सब विधाता के हाथ में है और मनुष्य विधि के हाथों का एक खिलौना है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हम इतने भाग्यवादी हो जायें कि कायरों की भांति कोई कार्य ही न करें। हमें लाभ-हानि, फलाफल के भ्रम को दूर करके निष्फल भाव से कार्य करना चाहिए। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।