एक आतंकपीड़ित महिला की आत्मकथा हिंदी निबंध | Ek atankpidit mahila ki atamkatha hindi nibandh
नमस्कार दोस्तों आज हम एक आतंकपीड़ित महिला की आत्मकथा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। आज सारा विश्व आतंकवादियों की गतिविधियों से थर्रा रहा है। उन्होंने विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को भी नाकों चने चबवा दिए हैं। हमारा देश, भारत तो कई सालों से आतंकवादी गतिविधियों से जूझ रहा है। उन्हीं आतंकवादियों के उत्पीड़न की शिकार, मैं एक महिला हूँ। मेरी व्यथाभरी कथा सुनना चाहते हैं ? तो सुनिए -
मेरा जन्म पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग शहर में हुआ था। मेरे पिताजी वहाँ के एक प्रतिष्ठित मेवा-व्यापारी हैं। माँ भी धार्मिक विचारोंवाली सुशिक्षित महिला है। दार्जिलिंग के रमणीय प्राकृतिक वातावरण में मेरा बचपन बहुत आनंद से बीता।
जब मैं कुछ बड़ी हुई, तो पिताजी ने दार्जिलिंग के एक कान्वेन्ट स्कूल मे मेरा दाखिला करवा दिया। वहाँ अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दी जाती थी। उस स्कूल से मैंने हाईस्कूल की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। इसके बाद मैंने एक स्थानीय कॉलेज से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इसी समय मेरे जीवन में एक मोड़ आया। पिताजी की दुकान पर मेवा बेचने के लिए अकसर अफगान व्यापारी आया करते थे। इन व्यापारियों में एक युवक भी था। पता नहीं, मुझे उस अफगान युवक की नीली आँखों ने आकर्षित किया या उसके ऊँचे कद की सशक्त काया ने, मैंने उसे अपना जीवन-साथी बनाने का निश्चय कर लिया।
जब मेरे इस निश्चय का पता मेरे माता-पिता को चला, तो घर में जैसे भूकंप आ गया। पिताजी ने बड़े जोर-शोर से मेरे इरादे का विरोध किया और माँ ने तो जहर खा लेने तक की धमकी दी। पर अंत में मेरे दृढ़ निश्चय के आगे सभी को झुकना पड़ा और उस अफगान युवक के साथ मेरा विवाह हो गया।
विवाह के कुछ दिनों बाद, मेरे पति मुझे लेकर अपने देश लौट गए। मेरे पति यूसुफ जई कबीले के युवक थे। उनके परिवार की स्त्रियों ने तो मुझे देखकर कुछ नहीं कहा, पर पुरुष समुदाय बहुत ही गुस्सा हुआ। लेकिन मेरे पति ने उनकी परवाह नहीं की। कुछ दिनों बाद मुझे वहीं छोड़कर वे अपने व्यापार के सिलसिले में दार्जिलिंग चले आए।
इसके बाद तो मुझ पर आफतों के पहाड़ ही टूट पड़े। पुरुष समुदाय तो मुझसे खफा था ही, औरतों ने भी मुझे सताना शुरू कर दिया। व्यंग्यबाणों की बौछार तो मामूली बात थी,
क दिनो तक मझे भखा भी रखा जाने लगा। एकाध बार तो मारपीट तक की जा आ गई। इसी बीच अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार कायम हो गई।
न जाने का उन्हें मेरे बारे में पता चल गया। एक दिन कुछ तालिबान युवक मेरे गाँव में आ धमके। उन्होंने मेरे परिवारवालों को डरा-धमकाकर मुझे घर से निकाला और लगभग घसीटते एक अनजान जगह पर ले गए। वहाँ उन्होंने मुझे एक कोठरी मे बंद कर दिया और निगरानी रखने के लिए एक तालिबान सैनिक को पहरे पर तैनात कर दिया।
में बहुत परेशान हो उठी। एकाएक मुझे याद आया कि हर अत्याचारी भीतर से बहत ही डरपोक होता है। एक दिन जब मेरा पहरेदार ऊँघ रहा था, मैंने झपटकर उसकी स्टेन गन उठा ली। जब आवाज सुनकर वह चौकन्ना हुआ,
तो मैंने वही स्टेन गन उसकी ओर तान दी। मारे डर के उसकी घिग्घी बँध गई और मैं वहाँ से भाग निकली। तालिबान ने मेरा पीछा तो बहुत किया, पर ईश्वर की कृपा से किसी तरह मैं अपने मायके दार्जिलिंग पहँच गई। यहाँ मेरे पति ने मुझे देखा, तो वे मुझे अपने घर ले गए।
लेकिन दुर्भाग्य ने यहाँ भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा। तालिबान यहाँ भी आ पहुँचे। उन्होंने मेरे पति को धमकी दी, तुम इस औरत को फौरन तलाक दे दो, नहीं तो अफगानिस्तान में तुम्हारे परिवार के लोगों की खैर नहीं है। मेरे पति ने मुझे तलाक तो नहीं दिया, पर वे अलग जरूर रहने लगे। कुछ दिनों के बाद जब उनका डर थोड़ा कम हुआ, तो हम लोग फिर साथ-साथ रहने लगे।
इसी बीच मैंने अंग्रेजी में आपबीती लिख डाली थी। वह पुस्तक के रूप में पकाशित भी हुई। उसके प्रकाशन के बाद मेरे पति को फिर धमकियाँ मिलने लगी हैं। एक दिन में एक कॉफी हाउस में बैठी हुई थी।
एकाएक तीन-चार अफगान युवकों ने मुझे घेर लिया और जबर्दस्ती अपने साथ ले जाने की कोशिश करने लगे। भला हो उस कॉफी हाउस के बेयरों का, जिनके बीच-बचाव से मैं उन राक्षसों के पंजे से छट पाई। दुधर मेरे पति अपने परिवारवालों की सुरक्षा के प्रति बहुत चिंतित हो गए हैं। वे दिल से तो नहीं चाहते, मगर मजबूर होकर मुझे तलाक देने की इच्छा उन्होंने जाहिर कर दी है। मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि मैं क्या करूँ?
क्या आप मझे इस आतंकवाद से छुटकारा पाने का कोई रास्ता बता सकते हैं? दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।