एक अकाल पीड़ित किसान की आत्मकथा | Ek akal pidit kisan ki atamkatha hindi essay
नमस्कार दोस्तों आज हम एक अकाल पीड़ित किसान की आत्मकथा इस विषय पर निबंध जानेंगे। आपको शायद याद होगा कि मैं एक बार आपको ट्रेन में सारंगी बजाकर गाते हुए मिला था। आपके कहने पर मैंने सारंगी पर एक पूरा गीत बजाकर सुनाया था। आज यहाँ सड़क के किनारे बैठा पत्थर तोड़ रहा हूँ। दिनों का फेर है बाबूजी, और क्या? मेरी आपबीती सुनने की इच्छा है? अच्छा, तो सुनिए -
मेरा नाम रामप्रकाश है। मेरा जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के एक गाँव में हुआ था। मेरे पिता गाँव के साधारण किसान थे। मेरी माँ एक अनपढ़ लेकिन कार्य-कुशल महिला थीं। मेरा बचपन बड़े लाड़-प्यार में बीता। जब मैं बड़ा हुआ, तो मुझे पढ़ने के लिए गाँव की पाठशाला में दाखिल करा दिया गया।
जब मैंने मिडल स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, तो पिताजी ने मुझे शहर के एक हाईस्कूल में भर्ती करवा दिया।
मैं पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेल-कूद में भी होशियार था। जल्दी ही मैं अपने शिक्षकों का प्रिय बन गया। मैंने हाईस्कूल की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की और कॉलेज में नाम लिखाने का स्वप्न देखने लगा।
किंतु उन्हीं दिनों पिताजी बीमार पड़ गए। बहुत दौड़-धूप की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ और उनकी बीमारी बढ़ती ही गई। अंत में एक दिन हम सबको अनाथ बनाकर वे इस संसार से विदा हो गए।
कालज जाने का विचार त्याग कर मझे गृहस्थी सँभालनी पडी। पाँच एकड़ की खेतीबारी थी। जीविका चलाने में कोई कठिनाई नहीं थी। पिताजी ने अपने जीवित रहते ही मेरा विवाह भी कर दिया था। इस समय मेरे परिवार में माँ, मेरी पत्नी तथा एक पुत्र हैं। किसी बात की कमी नहीं थी. बस पढाई अधूरी रह जाने का अफसास था
हमारे जिले में पिछले तीन वर्षों से लगातार सुखा पड़ता आ रहा है। पहले दो वर्षों तक ता लोगों ने धैर्यपूर्वक सूखे का सामना किया. लेकिन जब इस वर्ष भी पानी की एक बँट भी नहीं बरसी, तो सबके धीरज का बाँध टूट गया। पेड़-पौधे सूख गए, खेतों में धूल उड़ने लगी
और धरती में गहरी दरारें पड गईं। लाचार होकर गाँव के लोगों ने अपनी जन्मभमि को नमस्कार किया और एक-एक करके मजदूरी की खोज में निकल पड़े।मैंने कुछ दिनों तक घर में जो कुछ भी था, उसे बेचकर काम चलाया। जब लाचार हो गया, तो बैलों को रिश्तेदारों के यहाँ पहुँचा दिया।
एक भैंस थी, उसे कौड़ी के मोल बेच दिया। अब परिवार को घर पर छोड़कर मजदूरी की खोज में निकल पड़ा हूँ। कल का किसान आज मजदूर बन गया है। अकालपीड़ित जनता की मदद के लिए सरकार ने हमारे गाँव के पास सड़क बनवाने का काम शुरू किया है। बड़ी आशा लेकर मैं वहाँ गया था।
काम तो मिल गया, लेकिन दिनभर कसकर काम लेने के बाद जब ठेकेदार ने मजदूरी के रूप में बीस रुपए की जगह केवल पंद्रह रुपए ही दिए, तो उसके और मेरे बीच कहा-सुनी हो गई। मैंने भी आव देखा न ताव, उसे दो थप्पड़ रसीद कर दिए। इसके बाद मैं वहाँ से भाग निकला और यहाँ चला आया।
यहाँ मुझे सड़क के किनारे गिट्टी फोड़ने का काम मिल गया है। सबह से शाम तक मेहनत करने के बाद जो मजदूरी मिलती है, उसमें से कुछ अपने लिए रखता हूँ बाकी घर भेज देता है। छटी के दिन कभी-कभी में ट्रेन में सारंगी बजाकर आप लोगों कालाने निकल पड़ता हूँ।
अच्छा, बाबूजी, चलूँ, हथौड़ा सँभालूँ। आपका काफी वक्त ले लिया। अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जल्दी से जल्दी मूसलाधार बरसात हो, ताकि मैं अपने गाँव लौटकर बहुत दिनों से बिछुड़े अपने परिवार से मिल सकूँ। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।