एक असफल परीक्षार्थी की आत्मकथा हिंदी निबंध | Ek asfal parikaksharithi ki atamkatha hindi essay

 

एक असफल परीक्षार्थी की आत्मकथा हिंदी निबंध | Ek asfal parikaksharithi ki atamkatha hindi essay

नमस्कार  दोस्तों आज हम एक असफल परीक्षार्थी की आत्मकथा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।  मेरा नाम रामनाथ शर्मा है। मेरे पिताजी पेशे से वकील हैं। मेरी माताजी एक सामान्य महिला है और घर का कामकाज देखती हैं। मैं अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र हूँ।


जब पाठशाला जाने की मेरी उम्र हुई, तो मेरा नाम एक प्राथमिक पाठशाला में लिखवा दिया गया। इस पाठशाला में हिंदी भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी। माताजी अपने खाली समय में मुझे रामायण, महाभारत, राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी आदि की कहानियाँ सुनाया करती थीं। घर में अनेक प्रकार की पत्र-पत्रिकाएँ आया करती थीं। इस अनुकूल घरेलू वातावरण के फलस्वरूप मैं अपनी कक्षा के अच्छे विद्यार्थियों में गिना जाने लगा और शीघ्र ही अपने शिक्षकों का कृपापात्र बन गया।


मैंने सातवीं कक्षा की परीक्षा प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। उसके बाद मैं नगर के एक प्रतिष्ठित हाईस्कूल में प्रवेश पाने के लिए पिताजी के साथ गया। जब प्रधानाचार्य महोदय ने साक्षात्कार के लिए मुझे बुलवाया तो मैं घटकर उदय से उनके कक्ष में गया। उन्होंने मेरी अंक-तालिका देखी, एक-दो प्रश्न पूछे और प्रवेश दे दिया। घर आकर मैंने यह शुभ समाचार माताजी को सुनाया, तो वे बड़ी प्रसन्न हुईं।


मैं अपने स्कूल की हर परीक्षा में सर्वप्रथम आने लगा। पढाई-लिखाई में मेरी प्रगति देखकर मेरे माता-पिता भी प्रसन्न थे। पिताजी चाहते थे कि बडा होकर मैं भी उनकी तरह एक वकील बनूँ और आगे चलकर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की कर्सी पर बैठू। लेकिन माताजी चाहती थीं कि मैं एक सफल डॉक्टर बनूँ और लोगों की सेवा कर खूब नाम कमाऊँ। किंतु मेरी रुचि क्रिकेट में बढ़ने लगी थी। मैं न तो वकील बनना चाहता था, न डॉक्टर। मैं तो क्रिकेट के खेल में निपुणता हासिल कर सुनील गावसकर की तरह भारत की क्रिकेट-टीम में शामिल होकर देश-विदेश घूमना चाहता था। मेरे माता-पिता को क्रिकेट के प्रति मेरे लगाव का पता था, किंतु उन्हें मुझ पर पूरा भरोसा था कि मैं पढाई में पीछे नहीं रहूँगा।


मैंने एस. एस. सी. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मुझे अंग्रेजी, गणित और विज्ञान में विशेष योग्यता के अंक मिले थे। इसलिए मुझे महानगर के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में आसानी से प्रवेश मिल गया। माताजी की इच्छानुसार मैंने अध्ययन के लिए विज्ञान शाखा चुनी। किंतु इसके बाद सब कुछ अस्तव्यस्त हो गया। कॉलेज में भी मैं अपना अधिक से अधिक समय क्रिकेट खेलने में बिताने लगा। माता-पिता ने कई बार मुझे चेतावनी भी दी, किंतु मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। इसी का यह दुष्परिणाम हुआ है कि मैं बारहवीं कक्षा की इस परीक्षा में असफल हो गया हूँ।


मुझे बड़ी चिंता है कि अब मेरी माताजी की इच्छा का क्या होगा? फिर भी, मैं निराश नहीं हूँ। मैंने क्रिकेट से अपना नाता तोड़ लिया है। अपने क्रिकेट-प्रेमी साथियों से विदा ले ली है। अब मैं अपना सारा समय अध्ययन में लगा रहा हूँ और अगले वर्ष बोर्ड की परीक्षा में उज्ज्वल यश प्राप्त कर अपने माता-पिता की ग्लानि दूर करने की कोशिश कर रहा हूँ। परमात्मा मेरी सहायता करें। आपने मेरी व्यथा-कथा धैर्यपूर्वक सुनी, इसलिए मैं आपका आभारी हूँ। धन्यवाद। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।