रेल दुर्घटना पर निबंध | Essay on Train Accident in Hindi

 

 रेल दुर्घटना पर निबंध | Essay on Train Accident in Hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  रेल दुर्घटना पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। भूमिका-मनुष्य को अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न स्थानों में जाना पड़ता है। इन यात्राओं को पूरा करने के अनेक साधन हैं। प्राचीनकाल में पशु-कपित यानों में मानव यात्रा करते थे तथा कभी पैदल यात्रा भी करते थे। वर्तमान युग में यात्रा और आवागमन के अनेक वैज्ञानिक साधन बन गए हैं। मोटरें, बसें, जलयान, वायुयान, साइकिलें तथा रेलगाड़ियां आदि। इसकी सहायता से मनुष्य थोड़े समय में लम्बी यात्रायें आराम से तय कर लेता है।


 रेलवे के द्वारा यातायत भी सरलता से थोड़े समय में हो जाती है। रेलयात्रा में खतरे की सम्भावना भी कम मानी जाती है। रेलगाड़ी के डिब्बों की सीटों पर बैठे हुए आराम से बातें करते हुए तथा पुस्तक पढ़ते या ताश खेलते हुए यात्रा करना वास्तव में आनन्द से भरपूर होता है। रेलवे यद्यपि हमारे लिए अत्यधिक लाभकारी है तथापि कभी-कभी भयंकर हानि भी कर बैठती है। रेल दुर्घटना इसी तरह की हानियों में से एक है। रेल दुर्घटना में अत्यधिक करुण दृश्य उत्पन्न हो जाते हैं।


रेलयात्रा का क्रम-रेलवे द्वारा यात्रा करने में यात्रियों को स्टेशन पर पहुँचकर गाड़ी जाने के पूर्व ही उचित किराया देकर टिकट प्राप्त कर लेना आवश्यक होता है। उसके बाद गाड़ी में बैठकर यात्रा करने का वह कानूनन अधिकारी हो जाता है। आजकल लोगों का जीवन व्यस्ततापूर्ण हो गया है। आने-जाने का कार्य बहुत अधिक होने लग गया है। सहस्त्रों बस, बहुत ही लम्बी-लम्बी रेलगाड़ियाँ तथा अन्य सवारियाँ काम में लायी जा रही हैं फिर भी रेलों में इतनी भीड़ न जाने कहाँ से रोज होती है!


 बड़े-बड़े स्टेशनों पर टिकटघर के सामने एकत्रित काफी भीड़ और धक्का-मुक्की को देखकर ऐसा लगता है कि दुनियां के तीन-चौथाई व्यक्ति बराबर यात्रा ही करते रहते हैं। घंटों तक लाईन में लगने के बाद बड़ी परेशानी से भीड़ में से होकर किसी प्रकार से खिड़की के पास तक पहुँचने की नौबत आती है और टिकट मिलता है। टिकट लेकर जब भीड़ से बाहर निकलते हैं तो कभी-कभी कपड़े भी फट जाते हैं और पैरों की उँगलियाँ भी कुचल जाती हैं। 


गाड़ी आने पर तो प्लेटफार्म पर मानो किसी मेले से भी अधिक लोग टूट पड़ते हैं। गाड़ी के आते ही भीड़ डिब्बे में घुसती चली जाती है। लेकिन कौन जानता है कि इस उत्साह से सवार होने वाले यात्रियों की यह मण्डली कभी किसी भावी दुर्घटना में ग्रस्त होकर अत्यन्त कारुणिक और बेसहारा-से हो जाते हैं। हाल में ही डुमराव स्टेशन पर एक रेल दुर्घटना हुई थी।


यात्रा का शुभारम्भ-उस दिन लखनऊ स्टेशन पर भीड़ कम न थी। मेल ट्रेन तूफान चाल की रफ्तार से लाइन पर कंकड़ों को अपनी गति-जनित वायु से उछलती आ रही थी। गाड़ी प्रायः भरी हुई थी, लोग इधर-उधर दौड़-भाग कर किसी-न-किसी डिब्बे में लड़-झगड़कर बैठने का प्रयत्न कर रहे थे। कौन जानता कि इतनी आतुरता से गाड़ी में बैठने वालों में कितने परलोक का टिकट लिए बैठ रहे हैं, कितने अपने परिवार वालों के भाग्य से घायल होकर कटने के लिये बैठ रहे हैं तथा कितने सदा के लिए अपाहिज बनने के लिए यात्रा कर रहे हैं।


रेल दुर्घटना का समय और स्थान-गाड़ी चल दी, पंजाब मेल की प्रसिद्ध गति से इंजन दौड़ रहा था। स्टेशन को छोड़ती हुई तथा मिनटों के लिये जिले के स्टेशनों से गुजरती हई गाड़ी भागी जा रही थी। समयानुसार उसे 12 बजकर 15 मिनट पर अर्द्धरात्रि में इमराव स्टेशन पर पहुँचना था। गाड़ी समय के अनुसार ठीक चल रही थी।


रेल दुर्घटना का कारण-लाइनमैन लाइन बदलने के लिए गया। गलती से उसने गाड़ी को एक ऐसी लाइन पर ले लिया जिस पर पहले से ही मालगाड़ी दूसरी दिशा से आकर खड़ी हुई थी। इंजन के घूम जाने पर ड्राइवर ने आश्चर्य के साथ थोड़ी दूर पर मालगाड़ी को खड़ी देखा। उसकी मेल ट्रेन भी इसी लाइन पर दौड़ रही थी। समीप आने पर उसने गाड़ी की चाल को कम कर दिया। 


लेकिन होनी में जो लिखा होता है उसे कौन टाल सकता है। दोनों इंजन एक-दूसरे से धड़ाके के साथ टकरा गये। परिणाम यह हुआ कि गाड़ी की भयंकर टक्कर हो गयी। उसके आधे से अधिक डिब्बे लाइन से उछलकर थोड़ी दूर पर जाकर गिर गए। फिर उन डिब्बों के अधिकांश यात्रियों की ऐसी दुर्दशा हो गई कि उस स्थिति का वर्णन भी नहीं किया जा सकता।


स्थिति का वर्णन-दोनों गाड़ियाँ इतनी भीषणता से टकराई कि आगे के चार-पाँच डिब्बे दूर गिरकर चूर-चूर हो गये थे तथा उसमें स्थित यात्रियों का ढेर एकत्रित हो गया। कुछ तो उसी समय ही स्वर्गवासी हो गये तथा उनके अंगों के अवयवों का खोज करने पर भी पता नहीं लग रहा था। कुछ लोग इतनी गम्भीर चोटें खाए हए थे कि अन्तिम साँस के लिए संघर्ष कर रहे थे। कुछ यात्री ऐसे भी थे जो अपने स्थानों पर ही बैठे थे फिर भी उन सबकी दशा अत्यन्त खराब थी। 


कोई दस गज की दूरी पर गिरकर छिन्न-भिन्न पड़ा था, कोई कहीं पर मरा पड़ा हुआ था, किसी का कोई अंग नष्ट हो गया था, किसी का शव पहचाना जा सकता था, तो किसी को पहचाना भी नहीं जा सकता था। इतनी बड़ी गाड़ी में सहस्त्रों व्यक्ति विभिन्न प्रकार की यात्रा कर रहे थे, उनमें से कितने मरे हुए थे तथा कितने मरने की अवस्था में थे तथा कितने ही घातक चोट से घायल होकर मूर्छित पड़े थे। इनकी गणना करना असम्भव था। यह निश्चित था कि कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसको चोट न लगी हो। दुर्घटना होने के तत्काल बाद स्थानीय डॉक्टरों का दल आ गया।


घटनोत्तर कालीन उपचार-सभी कर्मचारी भाग-दौड़ करने लगे। मृतकों के शवों को अलग किया गया। जिनकी साँस चल रही थी उनको तुरन्त उपचार की व्यवस्था करके सरकारी एम्बुलेन्स गाड़ियों में लादकर उन्हें प्रधान रेलवे अस्पताल भेज दिया गया और जो भी घायल थे, उन्हें उसके बाद अस्पताल भेजा गया फिर मृतकों के शवों को गाड़ियों में लादकर अस्पताल में पहुँचाया गया।


 अस्पताल में एक स्थान पर इन शवों को जाँच के लिये रख दिया गया। सबके सामानों की पुलिस रखवाली कर रही थी। जिन्हें हल्की चोट लगी थी वे लोग अपने-अपने स्थान पर चले गए। वहाँ सभी की प्रारम्भिक चिकित्सा का प्रबन्ध किया गया था। यह तो सामान्य विवरण रहा है, साधारण यात्रियों का। इस भयंकर दुर्घटना की दुर्दशा का अनुमान उन डिब्बों को देखकर लगाया जा सकता है।


रेल दुर्घटना का प्रभाव-उन डिब्बों की दशा यह थी कि आगे वाले पाँच डिब्बे चूर-चूर होकर बिखर गए थे। उनका कोई भाग बिना खराब हुए नहीं बचा था। पटरियाँ, तख्ने, फाटक, बैठने की बेंचें आदि सभी यहाँ-वहाँ बिखरे हुए पड़े थे। लोहे के सामान तक टेढ़े-मेढ़े हो चुके थे। इंजन की दशा और भी खराब थी। उनके ड्राइवर और खलासी तथा कुली रुई की तरह धुने जा चुके थे।


 उनके किसी भी अंग को पहचान पाना असम्भव-सा था। प्रथम श्रेणी में बैठकर चलने वाले लोगों को भी गम्भीर घाव लगे थे। गार्ड का भी सिर टूट गया था। पीछे के डिब्बे में बैठे लोगों में मरने वालों की संख्या कम थी पर घायल होने वालों की गणना नहीं की जा सकती। यद्यपि समाचारों को प्रकाशित करने वाले समाचार-पत्रों ने मृतकों की संख्या कम ही बताई थी। इस दुर्घटना को देखकर भाग्य और भगवान की शक्ति का स्पष्ट अनुभव सभी लोगों को हो गया। उसी में दो बच्चे जिनकी अवस्था एक वर्ष से भी कम होगी तथा बढ़िया ऐसी भी निकली जिसे बिल्कुल भी चोट नहीं लगी थी। इस तरह की घटना कभी-कभी घट जाया करती है।


उपसंहार-इस दुर्घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि विज्ञान द्वारा बनाई गई सख-सुविधा की वस्तुएँ कितनी शीघ्रता से विनाश कर देती हैं कि इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। प्राचीन काल का सीधा-सादा जीवन कितना अधिक सुन्दर था इसका आभास भी मिल जाता है, दर्शकों की बड़ी भीड़ रोकने पर भी जमा हो गयी थी। हर दर्शक यही कहते सुने जा रहे थे, कि भगवान की कृपा है और अपना-अपना भाग्य जिसके अनुसार हर व्यक्ति को सुख-दुःख मिला करता है। रेलवे जैसी सुविधाजनक वाहन से इतनी हानि हो सकती है तो वायुयान, जलयान आदि की दुर्घटना से तो सर्वस्व नाश का ही दृश्य सामने आता है। यह भयंकर दुर्घटना मेरा हृदय दहला देती है। मैं सोचता हूँ

तितलियाँ फूल देखती हैं, काँटे न देख पातीं। मैं भी अच्छाई देखता, तो कितना अच्छा होता।। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।