जीवन की अविस्मरणीय घटना पर निबंध | essay on unforgettable incident in my life in hindi

 

जीवन की अविस्मरणीय घटना पर निबंध | essay on unforgettable incident in my life in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम जीवन की अविस्मरणीय घटना पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। भूमिका-मनुष्य को महत्वपूर्ण घटनाओं का स्मरण हो जाता है। हर व्यक्ति के जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनायें हो जाती हैं जो हमारे हृदय पर प्रभाव डालती हैं। कभी-कभी उनका रूप इतना मनोरंजक हो जाता है कि वह कभी नहीं भुलाई जा सकतीं। ऐसी घटनाओं की एक अविस्मरणीय तस्वीर मस्तिष्क में बन जाती है। जब कभी व्यक्ति उन्हें याद करता है तभी वह हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाता है।


 मेरे जीवन में वैसे तो अनेक घटनाएं घटी हैं। जिन्होंने मुझे प्रभावित किया है, परन्तु एक ऐसी घटना है। जब भी मैं उसे याद करता हूँ उसी समय मेरे मन में एक गुदगुदी उत्पन्न हो जाती है तथा मेरा मन भी प्रफुल्लित हो जाता है। वह घटना मेरे विद्यार्थी जीवन की है। उस समय मैं इण्टरमीडिएट प्रथम वर्ष का विद्यार्थी था। उस सुनहरे काल में हम सभी मित्र संसार की कठोरता और वास्तविकता से अनजान थे। हम सब में से किसी को भी अनुमान नहीं था कि भविष्य हमें कहाँ ले जा सकता है। उस घटना का सम्बन्ध मेरे मित्रों और मुझसे ही मुख्य रूप से था। ‘काश सम्बन्ध स्थायी होता' की संज्ञा दे सकते हैं।



जीवन की सबसे मनोरंजक घटना का परिचय-मैं अपने मित्र प्रकाश सक्सेना के साथ एक बारात में जाने वाला था। हम दोनों उस समय इण्टर और हाई स्कूल की परीक्षाएं देकर घर पर ही गर्मियों की छुटियां बीता रहे थे। हमें गोरखपुर जिले के देहात में सम्मानित एवं सम्पन्न ब्राह्मण जमींदार के घर जाना था। बारात में जाने की तैयारी में कपड़े गोरखपुर से धुलवाकर मंगवाये थे। एक नौकर और भण्डारी बुलाया गया तथा एक आदमी और साथ में चलने के लिए तैयार किया।


 वास्तव में हम लोगों की आर्थिक स्थिति साधारण थी, परन्तु सम्मान अधिक था। तैयार होकर हमारी टोली शाम 4 बजे ही जाने वाली थी। इतने सर्वांगपूर्ण बारातियों का साइकिल पर जाना शोभायमान न समझकर हाथी का प्रबन्ध किया गया। महावत ने शाम को आने का वादा किया था, परन्तु 11 बजे तक इन्तजार करने पर भी वह नहीं आया। शुरू में ही रंग में भंग पड़ने की स्थिति आती दिखाई दी और हम लोगों का मन उदास हो गया था। फिर भी अल्हड़ नींद आ ही गयी। 


पूरब की मीठी वायु का आनन्द हम लोग ले ही रहे थे कि प्रातः 3 बजे दरवाजे पर हाथी के आने की आहट हुई तथा मेरी चारपाई के बराबर में खड़ा करके परिचित महावत ‘कोरई' ने पुकारा, बाबूजी, हम आ गये जल्दी तैयार हो जाओ। हम लोग विचित्र मनोदशा में जाग गए। सारी तैयारी पूरी थी। लगभग 4 बजे बारातियों की टोली ने प्रस्थान किया।


24 मील की यात्रा के बाद दिन की गर्मी को पीछे छोड़ते हुए शाम 5 बजे हम लोग सही स्थान पर पहुँच गए। स्नान, जलपान करने के बाद बारात ने प्रथम कार्यक्रम की तैयारी शुरू कर दी। 5 हाथियों और 7 घोड़ों की गति की जाँच होने लगी। लम्बे-चौड़े गेहूँ के समतल खेतों में लगभग एक घण्टे तक घुड़दौड़ होती रही। फिर भगदड़ मची और हाथियों की दौड़ शुरू हो गयी। 


लगभग दो कदम की दौड़ में हमारा हाथी आगे निकल गया। बाराती के द्वार पर भी वही पहले पहुँचा। उसी समय हम लोग इतने प्रसिद्ध हो गए कि मानो हाथी हमारा अपना हो और वह हम लोगों का अपना माना भी गया, क्योंकि वहाँ के लोग वास्तविकता को नहीं जानते थे। स्त्रियों में कुछ विशेष चर्चा हुई। कार्य समाप्त हो गया और हमारे साथियों ने दूसरों के यहां पर रहने का प्रबन्ध किया। उस ग्वाले और पंडों ने वहां खूब रंग जमाया और अच्छी भूमिका बनाकर, वहीं बैठक को खत्म कर दिया। वहां जाने पर एक 15 वर्ष के सन्दर बालक ने हम लोगों का प्रेमपूर्वक स्वागत किया और हमारे खाने-पीने का प्रबन्ध किया। उस स्वागत को देखकर में आश्चर्यचकित हो गया कि कारण क्या है?


 कहाँ बारातियों को तो लोग आग भी नहीं देना चाहते और यहां सम्मान मिल रहा है। पूछताछ करने पर पता चला कि इस घर में वह लड़का, उसकी माँ, उसकी कुंवारी चचेरी बहन तीन ही लोग थे। जमींदारी अच्छी थी और 14 बैलों की सीर थी। शाम का समय स्थिर होने पर हमजोलियों में हम लोगों के सौभाग्य की चर्चा होने लगी, क्योंकि वह लड़का भी हमारे साथ बारात में गया और हमारे साथ ही रहा।


 देहात की बारात थी। दोनों ओर हास-परिहास होता रहा। हम व्यायाम करने के लिए जब आए तो मैंने उस लड़कस मजाक में कह दिया कि 'काश हमारा-तुम्हारा सम्बन्ध स्थायी होता।' यह वाक्य उसकी माँ ने सुन लिया। उसने हम लोगों का पूरा परिचय जानकर ही अपने घर पर ठहराया था। यह बात हमें बाद में ज्ञात हुई। जब वह लड़का घर में गया तो उसकी माँ ने उसे कुछ सिखा दिया।


 लड़का मिठाई लेकर आया। मुझे मिठाई देते हुए उसने कहा, सक्सेना जी! यह सम्बन्ध स्थायी करने की मिठाई है। जिसने इस मिठाई को बनाया है उसी की आत्मा इसके माध्यम से मध्यस्थ है। उस समय हमने हास्य का आनन्द लेते हुए उसके स्पन्दित हाथों से मिठाई को लेकर मुँह में रख लिया। इस घटना को देखने वाले फाटक की आड़ में देखते रहे। इसके पश्चात् रात का आनन्द लेते हुए हम लोग निद्रा देवी की गोद में चले गए। इस प्रकार स्वर्गीय आनन्द विभावरी गयी। दिन आया और वह अपनी व्यस्त लीला समाप्त करके चला गया, बाहर भोजन बनाने वाले अपने चूल्हा-लकड़ी के धन्धे में जुट गए, किन्तु हम लोगों के भोजन का प्रबन्ध उस लड़के के घर था।



समय के अनुसार हम तीनों मित्रों को सजे हुए चौके में भोजन के लिए बैठाया गया। वहाँ अनन्त सौन्दर्य से परिपूर्ण स्त्री भोजन तैयार करके परोस रही थी। लड़का थाल सामने रख रहा था। उसके बाद हम तीनों भोजन करने बैठ गए तथा माताजी, से बातें शुरू कर दी। जिसे आपसे सम्बन्ध स्थायी करना था उसने मिठाई दे दी और उसी के संग में अपना हृदय भी। आपने उसे स्वीकार भी कर लिया। मेरे मित्र ने कहा, माताजी, साफ बात कहें। हमारे मित्र की बुद्धि में बातें कुछ देर से आती हैं। वैसे तो यह क्वीन्स कॉलिज में श्रेष्ठ विद्यार्थी माने जाते हैं। उन्होंने उत्तर दिया, बात यह है कि आपकी शादी कहीं तो होगी ही। अब ऐसा अवसर न आपको मिलेगा और न ही हमें।



घटना का प्रवाह-मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। इस सम्बन्ध में उन्होंने और भी आवश्यक बातें कीं। मैंने छोटा-सा उत्तर दिया कि मैं स्वतन्त्र नहीं हूँ'। अन्दर से एक निःश्वास आई जिसने पूरुषत्व को ललकारा। उन लोगों ने सुन रखा था कि लड़का स्ट्यं विवाहसे इन्कार कर रहा है। भोजन क्रम समाप्त हुआ। सब लोग नृत्य-गान का रस लेने चले गए। मित्र महोदय भी मेरी हँसी उड़ाकर चले गए। पर हम 4 लोग वहीं रह गए। हम लोगों ने काफी बातचीत की, पर मामला अनिश्चित ही रहा। मैंने उन लोगों से कह दिया कि मैं सुबह चला जाऊंगा। लेकिन मैंने उन लोगों की भरपूर सहायता का वादा किया।


उपसंहार-एक वर्ष का समय बीत गया। मेरे पिताजी ने मेरा विवाह पक्का कर दिया, क्योंकि वे अपनी बीमारी से चिन्तित थे। यही लड़का और उसके मामा बारात की रात में अनजान यात्री के रूप में मेरे अनपढ़ किन्त रईस पिताजी से परिचय कर रहे थे। मझे तिलक वाले दिन बुलाया। घर आने पर विवाह का समाचार ज्ञात हो गया। पर दुःख था कि मैं उन लोगों की सहायता का वायदा करके भी नहीं कर रहा था। 


पर मेरी सहायता के बिना भी ठीक विवाह हो गया। कुछ भी कहने पर पिताजी के दुःखी होने का डर था इसलिए मैं चुप रहा। यहाँ विभिन्न प्रकार की चर्चा चल रही थी, किन्तु तिलक का दिन आने के समय उस लड़के को देखकर आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा। उसको गले लगाकर मैंने कहा कि आज सम्बन्ध स्थायी हो गया। उसने उत्तर केवल हाँ में दिया। यही जीवन की सबसे मनोरंजक घटना है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।