एक घड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध | Ghadi ki atmakatha essay in hindi

 

एक घड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध | Ghadi ki atmakatha essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम एक घड़ी की आत्मकथा हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। मुझे इस हालत में देखकर आप नाक-भौं सिकोड़ रहे हैं। किंतु मैं सदा से ऐसी नहीं थी। कभी मैं भी बहुत सजीली और चमकदार थी। जब मुझे काले मखमल के पट्टे से मालिक अपनी कलाई पर बाँध लेते थे, तब उनकी आँखों में एक चमक और स्वर में अजीब-सी खनक आ जाती थी।



भारत के दक्षिणी भाग में कर्नाटक राज्य है। उसी राज्य के बंगलोर शहर में मेरा जन्म हुआ था। उस शहर में भारत सरकार द्वारा संचालित 'हिंदुस्तान मशीन टूल्स' नामक एक बड़ा कारखाना है। वही कारखाना मेरा जन्मस्थान बना। आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व उस कारखाने में अनेक छोटे-बड़े पुों को जोड़कर मेरे शरीर की रचना की गई। 



गोलाकार सफेद डायल से मेरे शरीर का ऊपरी भाग रचा गया। उस पर काले रंग की दो सुइयाँ लगा दी गईं। उस डायल पर काले रंग से ही एक से बारह तक अंक लिखे गए। इसके बाद मेरी छाती पर रोमन लिपि में मेरा नाम लिखा गया-'जनता'। अंत में मेरे डायल पर गोलाकार काँच लगाकर मुझे एक सुनहले डिब्बे में बंद कर दिया गया। फिर, कुछ दिनों बाद अनेक घड़ियों के साथ मुझे मुंबई की एक दुकान में बिक्री के लिए भेज दिया गया। वहाँ हम सबको शो-केस में सजाकर रख दिया गया।



उस दुकान में ग्राहक आते और मुझ पर एक नजर डालकर चले जाते। मेरा रूप-रंग आकर्षक तो था, किंतु कीमत कुछ अधिक थी। एक दिन कुर्ता-धोती पहने एक वृद्ध सज्जन आए। उन्हें अपने पुत्र के लिए एक घड़ी की जरूरत थी। ज्योंही उनकी निगाह मुझ पर पड़ी, उनका चेहरा खुशी से चमक उठा। उन्होंने तुरंत दुकानदार को मेरी कीमत चुकाई और मुझे लेकर दुकान से बाहर निकल आए। दूसरे दिन जब उन्होंने मुझे अपने पुत्र को सौंपा, तो खुशी से चमकता उनका चेहरा देखने ही लायक था।



मेरे नए मालिक एक विद्यालय में शिक्षक थे। मुझे पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए। मैं भी उनके बाएँ हाथ की कलाई पर बँधकर अपना भाग्य सराहने लगी। मेरे स्वामी बड़ी सावधानी के साथ मेरी देखभाल करते थे। शायद जीवन में पहली बार उन्हें घड़ी पहनने का अवसर मिला था।



 विद्यालय से घर लौटने के बाद वे मुझे एक मखमली डिब्बे में बंदकर, बच्चों की पहुँच से दूर रख देते थे। प्रतिदिन निश्चित समय पर चाबी देकर वे मुझे गतिमान रखते थे। शुरू-शुरू में कुछ दिनों तक वे एक मखमली टुकड़े से मेरे शरीर पर पड़नेवाली धूल साफ कर दिया करते थे। 


बाद में, वह मखमली टुकड़ा कहीं खो गया और वह टूट गया। मेरे स्वामी का जीवन बडा ही नियमित था। मैं भी उनकी सेवा में बडी तत्परता से लगी रहती थी। एक बार मैं उनके हाथ से छूटकर फर्श पर गिर पड़ी और मेरे डायल लगा शीशा फूट गया। तुरंत उनकी पत्नी मुझे लेकर एक घडीसाज के यहाँ गईं और शीशा लगवाकर ही लौटीं।


 इस प्रकार मेरे दिन बड़े आनंद से बीत रहे थे कि मेरे जीवन में भूकंप-सा आ गया। एक दिन उस परिवार के लोगों में किसी विषय पर बड़े जोर-शोर से बहस हो रही थी। एकाएक मेरे स्वामी ने बड़े जोर से अपना बायाँ हाथ मेज पर पटका। उसी क्षण मेरा मखमली पट्टा टूट गया और मै फर्श पर आ गिरी। 


मेरी हड्डी-पसली चूर-चूर हो गई और भयानक पीड़ा से मैं बेहोश-सी हो गई। मेरी दुर्दशा देखकर मेरे मालिक बहुत दुखी हुए। निराशा से सिर हिलाते हुए उन्होंने मुझे उठाया और आलमारी के एक कोने में रख दिया। अब तो जमाना ही बदल चुका है।


 चाबीवाली घड़ियों की जगह स्वचालित अथवा क्वार्ट्स कणिकाओं से चलनेवाली घड़ियाँ बाजार में आ गई हैं। मेरे मालिक ने भी एक स्वचालित घड़ी खरीद ली। इसके बाद, फिर कभी उन्होंने भूलकर भी मेरी ओर नहीं देखा। उस आलमारी में मैं कितने समय तक पड़ी रही, नहीं बता सकती। अंत में एक दिन मेरा भाग्य जागा। मेरे मालिक के बेटे को घड़ी की जरूरत महसूस हुई। 


मुझे आलमारी के कोने में से बाहर निकाला गया और मेरे कल-पुर्जे दुरुस्त करवाए गए। अब मैं अपने मालिक के बेटे की कलाई पर बँधी रहती हूँ।


अब तो मैं बूढ़ी हो चली हूँ। मेरा डायल बहुत पुराना हो चुका है। इस पर लिखे अंकों का रंग उड़ गया है। पता नहीं, कब तक मेरी सेवा ली जाती रहेगी। फिर भी मैं द:खी नहीं हूँ। मैंने सच्चाई और क्रियाशीलता को ही जीवन माना है। मैं अपने को भाग्यवती मानती हूँ कि ऐसे विचारवान स्वामी के घर में मुझे जगह मिली। अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इसी घर के लोगों की सेवा करते-करते ही मेरे जीवन का अंत हो। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।