कृषि के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान निबंध | krishi ke chetra mein vigyan ka yogdan hindi essay
नमस्कार दोस्तों आज हम कृषि के क्षेत्र में विज्ञान का योगदान निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। मानवीय व्यवसायों में कषि-व्यवसाय प्रमुख है। वर्तमान युग में उद्योग-धंधों का अभूतपूर्व विकास हुआ है। फिर भी, मानव-जाति अधिकांशतः कृषि-उत्पादों पर ही निर्भर है। कृषि से ही हमें खाद्यान्न, विभिन्न प्रकार के तेलहन, दालें, गन्ना, चकंदर, आदि प्राप्त होते हैं। कृषि-क्षेत्र से ही सास, पटसन तथा अनेक प्रकार के फल मिलते हैं। अनेक प्रकार के उदयोग-धंधे कृषि-उत्पादों पर आधारित हैं। विश्व की सबसे अधिक आबादी एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के देशों में निवास करती है। इन क्षेत्रों में कृषि ही प्रमुख व्यवसाय है।
वर्तमान युग वैज्ञानिक आविष्कारों का युग है। चारों ओर प्राकृतिक शक्तियों पर विज्ञान की विजय-दुंदुभि बज रही है। कृषि के क्षेत्र में भी विज्ञान ने कल्याणकारी योगदान दिया है। आज की कृषि पूरी तरह से वैज्ञानिक आविष्कारों पर आधारित है। पुराने जमाने की खेती और आधुनिक कृषि में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। कहाँ लकड़ी के हल की मदद से की जानेवाली खेती और कहाँ आज की यांत्रिक कृषि।
अठारहवीं शताब्दी से विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ने लगी थी। आज समूचे विश्व की जनसंख्या छह अरब से भी अधिक हो चुकी है। इस विशाल जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए मनुष्य ने विज्ञान की शरण ली। विज्ञान ने भी कृषि के क्षेत्र में अनेक चमत्कारी आविष्कार कर मानव जाति को भूखों मरने से बचाया है।
वैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार के कृषियंत्रों का निर्माण किया है। बिजली की मदद से इन यंत्रों का संचालन अच्छी तरह किया जा सकता है। खेतों की जुताई के लिए टैक्टरों फसलों की कटाई के लिए हार्वेस्टरों आदि बड़े यंत्रों की सहायता से यांत्रिक कृषि की जाने लगी है। भारत जैसे विशाल जनसंख्यावाले देशों में खेतों का आकार छोटा होता है। इन खेतों में कृषि करने के लिए छोटे ट्रैक्टर, एक हॉर्सपॉवर के पंप आदि छोटे-छोटे कृषियंत्रों का निर्माण किया गया है। इन यंत्रों की मदद से खेती करना आसान हो गया है और पैदावार भी बढ़ने लगी है।
हमारे देश की कृषि मुख्यत: वर्षा पर आधारित है। यहाँ होनेवाली मानसूनी वर्षा बहुत अनिश्चित और अनियमित होती है। इसलिए यहाँ के कृषि-क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या सिंचाई की है। विज्ञान की सहायता से नदियों से नहरें निकाली गई हैं तथा नलकूप लगाए गए हैं। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में इन नहरों द्वारा सिंचाई कर उन्हें फसलों से लहलहाते क्षेत्रों में बदल दिया गया है। राजस्थान का गंगानगर जिला आज से कुछ वर्षों पूर्व शुष्क मरुस्थल था। अब इंटिस नहर के कारण वह प्रदेश हरा-भरा कृषि क्षेत्र बन गया है। विज्ञान की मदद से उष्ण समस्थली प्रदेशों में भूमिगत नहरें बनाई गई हैं। उन प्रदेशों में तीव्र वाष्पीकरण से फसलों की रक्षा करने के लिए कृषि-क्षेत्रों को ढकने की व्यवस्था भी की गई है।
वैज्ञानिकों ने सुधारित और संकरित बीजों का आविष्कार किया है। प्रतिकूल जलवाय में भी ये बीज अंकुरित हो सकते हैं और अच्छी पैदावार देते हैं। इन बीजों से पैदा होनेवाले पौधों पर रोगों का आक्रमण भी कम होता है। सुधारित बीजों का उपयोग करने से शीत कटिबंधीय क्षेत्रों में भी अच्छी खेती की जाने लगी है। उत्तरी कनाडा तथा रूस के उत्तरी भागों जैसे शीतप्रधान जलवायुवाले क्षेत्रों में भी विज्ञान के बल पर गेहूँ की खेती होने लगी है।
विभिन्न प्रकार के रोगों के आक्रमण से फसलों की रक्षा करने के लिए अनेक प्रकार की औषधियों और कीटनाशकों का आविष्कार किया गया है। फसलों की वृद्धि तथा अधिकाधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाने लगा है। कृषि-क्षेत्र में चमत्कारी आविष्कारों के फलस्वरूप हमारे देश में 'हरित क्रांति' हुई है और खाद्यान्न उत्पादन के मामले में हम आत्मनिर्भर हो गए हैं।
विश्व की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। इस बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्नों तथा अन्य कृषि-उत्पादों संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कृषि का अधिकाधिक विकास करना बहुत जरूरी है। कृषि के क्षेत्र में वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रयोग ने किसानों में वैज्ञानिक दृष्टि का विकास किया है। वे खेती की पुरानी पद्धतियाँ त्यागकर नई-नई वैज्ञानिक पद्धतियाँ अपना रहे हैं। यह बहुत ही शुभ लक्षण है, क्योंकि भारत जैसे घनी आबादीवाले देश में कृषि के विकास से ही देश की उन्नति हो सकती है। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।