राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका पर निबंध | Essays on Role of Youth in Nation Building in Hindi
नमस्कार दोस्तों आज हम राष्ट्र निर्माण में युवा की भूमिका पर निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे।
मानवजीवन की चार प्रमुख अवस्थाएँ हैं - बाल्यावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था। बाल्यावस्था में भोलेपन और अल्हड़ता की प्रधानता होती है। प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति अधिक समझदार हो जाता है और फूंक-फूंककर कदम रखने लगता है।
जब हमारे देश की एकता तथा अखंडता सुरक्षित रहे और देश की आंतरिक शक्ति बढ़े। हमारा स्वप्न था– स्वतंत्र भारत की स्थापना। वह स्वप्न तो साकार हुआ। किंतु आज हमने इस देश के अपने-अपने छोटे-छोटे भारत बना लिये हैं।
आजादी मिलने के पचास वर्ष बाद भी राष्ट्रीय एकता का प्रश्न ज्यों का त्यों बना हुआ है और धीरे-धीरे वह और भी उग्र रूप धारण करता जा रहा है। कहीं भाषाओं के कारण, तो कहीं जातियों और संप्रदायों के कारण, भारत छोटे-छोटे गुटों में बँटता जा रहा है। सभी विचारशील एवं देशभक्त लोग भारत की एकता पर हो रहे आघातों से चिंतित और व्यथित हैं।
१५ अगस्त, १९४७ के पूर्व सारे देश का प्रधान लक्ष्य था- आजादी प्राप्त करना। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से असम तक, सारा देश विदेशी शासकों के विरुद्ध एकजुट होकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा था। देश के सभी नर-नारियों के हृदय में राष्ट्रवाद की भावना व्याप्त थी।
परंतु आजादी मिल जाने पर, अनेक कारणों से राष्ट्रवाद की यह भावना संकुचित होती चली गई। इस समय तो देश में इस भावना का सर्वथा अभाव ही दिखाई देता है। नतीजा यह हुआ है कि लोग प्रदेश, जाति, संप्रदाय, धर्म आदि को राष्ट्र से बड़ा मानने लगे हैं।
राष्ट्र के कल्याण के लिए आत्म-बलिदान करने की भावना समाप्तप्राय हो गई है। इसके परिणामस्वरूप, देश के विभिन्न भागों में अलगाववाद का तूफान उठ रहा है।
इस विशाल देश की भयंकर समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयत्न किए जाने चाहिए। किंतु प्रांतीयता अथवा क्षेत्रीयता की बढ़ती भावना के कारण राष्ट्रीय दृष्टिकोण का अभाव हो गया है और देश की एकता खतरे में पड़ गई है।
विदेशी शक्तियाँ भी देश के अलगाववादी तत्त्वों को हर प्रकार से बढ़ावा दे रही हैं, जिसके कारण राष्ट्रीय एकता सुरक्षित रखने की समस्या पैदा हो गई है। पड़ोसी देशों से भी हमारे देश के संबंध मधुर नहीं हैं, बल्कि कटुतापूर्ण ही हैं।
वे भी हमारी राष्ट्रीय एकता को भंग करने की कोशिश में लगे हुए हैं, ताकि हम स्वतंत्र रूप से प्रगति और विकास न करने पाएँ।
हमारे समाजसुधारकों के प्रयत्नों से और औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप इस देश में जाति-पाँति का भेदभाव शिथिल हो रहा था। किंतु स्वार्थी नेताओं ने वोट प्राप्त करने के लिए जातिवाद की बुझती आग को फिर से प्रज्वलित कर दिया है। इससे भी देश की एकता के लिए खतरा पैदा हो गया है।
इसके अतिरिक्त, हमारे देश में ऐसे नेताओं का अभाव है. जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त हो। वर्तमान नेताओं में से ऐसा कौन है, जो महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण जैसी विभतियों की बराबरी कर सकता है ?
देश में राष्ट्रव्यापी राजनीतिक संगठनों के स्थान पर क्षेत्रीय नेताओं और प्रादेशिक दलों का उदय हो रहा है, जो राष्ट्रीय एकता की भावना को कमजोर बनाते हैं। वर्तमान राजनीतिक दल तथा नेतागण चुनाव जीतने के लिए क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, जातीयता आदि को बढ़ावा देकर राष्ट्र की एकता के लिए संकट पैदा करने में लगे हुए हैं।
देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने के लिए जनता के हृदय में राष्ट्रीयता की भावना भरनी होगी। ढोंगी नेताओं और कपटी समाजसेवकों को दुत्कारना होगा। धर्मांधता और क्षेत्रीयता को तिलांजलि देनी होगी। जातीयता और भाषागत भेदभाव को मिटाना होगा।
देश की समस्याओं के समाधान राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ही खोजने होंगे। हमेशा यह बात याद रखनी होगी कि हम पहले भारतीय हैं, बाद में हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।