एक मुरझाए फूल की आत्मकथा हिंदी निबंध | Phool ki Atmakatha in Hindi Essay
नमस्कार दोस्तों आज हम एक मुरझाए फूल की आत्मकथा हिंदी निबंध
इस विषय पर निबंध जानेंगे। आप मुझे पैरों तले कुचलते हुए चले जा रहे हैं।
मेरे विरोध के क्षीण स्वर की ओर आपने ध्यान ही नहीं दिया। कैसे ध्यान
देते? अब तो मैं एक मुरझाया हुआ फूल हूँ और मिट्टी में मिल जाने की
प्रतीक्षा कर रहा हूँ। तीन दिन पहले ही एक पौधे की चोटी पर कली के रूप में
मेरा जन्म हुआ था।
मेरे साथ-साथ
और भी कई कलियाँ उस पौधे पर लगी हुई थीं। उस समय सारे बाग में बहार-सी छा
गई थी। भौरों का झुंड मधुर स्वर में गुनगुनाता हुआ मेरे चारों ओर मँडराने
लगा था। शीतल, मंद समीर हल्के-हल्के झोंके देकर मुझे झुला रहा था। बालसूर्य
की सुनहली किरणे सुखद उष्णता पहुँचाकर मुझमें नई चेतना का संचार करने लगी
थीं।
दूर किसी पेड़ की डाली पर बैठी बुलबुल गा उठी थी-'हँसो, पहनो काँटों के हार, मधुर भोलेपन के संसार।'
एक-एक
कर मेरी पंखुड़ियाँ खिलने लगीं। धीरे-धीरे मैंने एक सुंदर पुष्प का रूप
धारण कर लिया। मेरी गर्वभरी मधुर मुस्कान ने तितलियों को आनंदविभोर बना
दिया।
वे मेरे चारों ओर मँडराने
लगी। भौरे रसपान करने के लिए मेरे पराग-कोष के इर्दगिर्द गुंजन करने लगे।
प्रात:काल की सैर के लिए आए नर-नारियों ने हम सबको लालसाभरी निगाहों से
देखा, लेकिन माली की मौजूदगी के कारण कोई भी हमें छूने की हिम्मत न कर सका।
शीतल
हवा के झोंकों पर झूमता हुआ मैं चारों ओर अपना सौंदर्य और अपनी सुगंध
बिखेर रहा था। सहसा मैंने माली को अपनी ओर आते देखा। उसके चेहरे पर
निर्दयता का भाव देखकर मैं भय से काँप उठा, किंतु बेबस था। उस निर्दयी ने
मेरी और मेरे साथियों की चीख-पुकार, अनुनय-विनय एक न सुनी और डालियों से
तोड़कर हमें एक डलिया में इकट्ठा कर लिया।
किंतु
इतने से ही हमारी यातना का अंत नहीं हुआ। उस निष्ठुर माली ने लोहे की
तीक्ष्ण सुई से हम सबके हृदय विदीर्ण कर उनमें धागा पिरो दिया। उस समय मैं
असह्य वेदना से मूर्छित हो गया। जब होश आया तो देखा कि मैं एक सुंदर हार का
अंग बना हुआ हूँ।
वह हार एक सभा
में अध्यक्षता करने के लिए आए हुए नेताजी को पहना दिया गया। जब वे भाषण
देने के लिए उठे, तो उन्होंने उस हार को अपने गले में से उतार कर साथ आए
चपरासी को दे दिया। चपरासी ने वह हार किसी और व्यक्ति को सौंप दिया।
अंत
में वह हार क लड़के के हाथ लग गया। अब तक हार में लगे प्रायः सभी पुष्प
कुम्हला चुके थे, केवल मैं ही तरोताजा बना हुआ था। उस लड़के ने हार में से
मुझे निकाल लिया और बने हुए भाग को कूड़ेदानी में डाल दिया।
कुछ
देर तक वह लड़का मुझे सूंघता रहा, फिर उसने मुझे भी जमीन पर फेंक दिया। अब
मैं भी मुरझा रहा हूँ। थोड़ी देर पहले तक जो मुझे लालसाभरी निगाहों से देख
रहे थे, अब वे ही मुझे पैरों तले कुचलते हुए चले जा रहे हैं।
मैंने जीवन के अनेक रूप देखे हैं।
मेरा
अनुभव है कि जीवन की प्रगति संघर्ष के वातावरण में ही होती है। सुख-विलास
की अधिकता जीवन-शक्ति को कुंठित कर देती है। जीवन में सख और दख बारी-बारी
से आते-जाते रहते हैं। इसलिए हर परिस्थिति में व्यक्ति को शांत और स्वस्थ
रहना चाहिए।
अब मेरे जीवन के दिन पूरे हो चुके
हैं। अब तो केवल यही कामना है कि शीघ्र ही मैं अंतिम साँस लूँ, जिससे मेरी
निर्जीव देह खाद बनकर मिट्टी में मिल जाए और दूसरे फूलों को जीवन दे सके।
दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।