यदि बैंक न होते तो हिंदी निबंध | yadi bank na hota par essay in hindi

 

 यदि बैंक न होते तो हिंदी निबंध | yadi bank na hota par essay in hindi

नमस्कार  दोस्तों आज हम  यदि बैंक न होते तो हिंदी निबंध इस विषय पर निबंध जानेंगे। यह कल्पना ही बहुत घबरा देनेवाली है कि यदि बैंक न होते, तो क्या होता? आज बैंक हमारे जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं। किसी भी प्रकार के पैसों के लेन-देन में हम बैंकों का ही सहारा लेते हैं। आइए विचार करें, यदि बैंक न होते, तो क्या-क्या परिणाम होते?


किसी भी देश में उद्योग-धंधों के विकास के लिए कुछ कारकों का होना बहुत जरूरी होता है। इनमें एक महत्त्वपूर्ण कारक पूँजी है। बड़े उद्योगों को प्रारंभ करने के लिए काफी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ी मात्रा में पूँजी जुटाना संभव नहीं है।


उन्हें किसी बैंक से पूँजी उधार लेनी ही पड़ती है। यदि बैंक न होते, तो उद्योग प्रारंभ करने के इच्छुक लोगों को पूँजी कहाँ से मिलती? पूँजी के अभाव में उद्योग-धंधों की स्थापना न हो पाती और देश अविकसित स्थिति में ही रह जाता।


आज चारों तरफ व्यापार एवं वाणिज्य के वैश्वीकरण (ग्लोबलाइजेशन) की हवा चल रही है। संसार के लगभग सभी राष्ट्रों ने 'विश्व व्यापार संगठन' की सदस्यता ग्रहण कर ली है। इस विश्वव्यापी व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए बैंकों द्वारा लेन-देन की व्यवस्था जरूरी है। 


यदि बैंक न होते, तो विदेशी व्यापार के लिए अर्थ का प्रबंध कौन करता? बैंकों के अभाव में विश्वव्यापी व्यापार की कल्पना, कल्पना मात्र रह जाती और सभी देश अलग-थलग पड़ जाते। 


 हर देश की अपनी अलग मुद्रा-व्यवस्था है। जापान की मुद्रा 'येन' है. तो अमेरिका की 'डालर'। इंग्लैंड की मुद्रा ‘स्टर्लिंग' है, तो इराक और कुवैत की दिनार। दक्षिण अफ्रीका की मुद्रा रैंड कहलाती है, तो भारत की 'रुपया'। विदेशी व्यापार के सिलसिले में किसी भी देश को विभिन्न देशों की मुद्राओं का मूल्य अपनी मुद्रा में स्थिर करना पड़ता है। यह कार्य बैंकों द्वारा ही हो सकता है। 


यदि बैंक न होते, तो विदेशी मुद्रा का विनिमय और उसका मूल्य स्थिरीकरण कौन करता? विनिमय की दर और मूल्य का स्थिरीकरण न होने की स्थिति में विदेशी व्यापार ही ठप हो जाता।


आजादी मिलने के पहले भारत की कृषि बहुत ही पिछड़ी हुई स्थिति में थी। किसानों की हालत बहुत शोचनीय थी और देश को विदेशों से अनाज का आयात करना पड़ता था। 


जब किसानों ने कृषि की वैज्ञानिक तकनीक अपनाई, तब देश में हरित क्रांति' हुई और खाद्यान्न उत्पादन के मामले में हम आत्मनिर्भर हो सके। किंतु इस उत्पादन वृद्धि को कायम रखने के लिए बड़ी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों, सुधारित बीजों, कीटनाशकों आदि का उपयोग करना जरूरी होता है। 


इस देश के किसान आर्थिक दृष्टि से इतने समृद्ध नहीं हैं कि इन महँगे साधनों को खरीद सके। अत: इन्हें खरीदने के लिए वे बैंकों से ऋण लेते हैं। यदि बैंक न होते, तो किसानों को आसान शर्तों पर ऋण कौन देता? बैंकों के अभाव में हरित क्रांति' असंभव होती और भारतीय किसान सूदखोर महाजनों के चंगुल में फँस जाता।


आजादी मिलने के बाद हमारे देश की सरकार ने देश के विकास के उद्देश्य से अनेक महत्त्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं। नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बनाए गए हैं। शिक्षा के प्रसार के लिए अनेक कार्यक्रम लागू किए गए हैं। देश को शस्त्रास्त्रों के उत्पादन एवं सुरक्षा के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सार्थक कदम उठाए गए हैं।



रेलों, सड़कों आदि यातायात के साधनों का विस्तार किया गया है। देश के पिछड़े, दलित वर्ग को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने के लिए प्रयास किए गए हैं। इन सारी योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए भारी मात्रा में पूँजी की आवश्यकता होती है। 


सरकार यह पूँजी बैंकों द्वारा ही प्राप्त करती है। यदि बैंक न होते, तो इन योजनाओं को साकार करने के लिए सरकार आवश्यक पूँजी कहाँ से जुटा पाती? बैंकों के अभाव में ये योजनाएँ कागज पर ही रह जातीं और देश आदिम स्थिति में लौट जाता।


यदि बैंक न होते, तो लोगों को अपनी कमाई घरों में ही रखनी पड़ती। तब चोरी-डकैती बढ़ जाती और कानून-व्यवस्था लागू करना मुश्किल हो जाता। किंतु यह सोचना अनावश्यक है कि कभी बैंकों का अस्तित्व न रहेगा। वास्तव में बैंक मानव सभ्यता के विकास के अभिन्न अंग हैं। 


इसलिए वे अनिवार्य रूप से बने रहेंगे और उत्तरोत्तर विकसित होते जाएँगे। दोस्तों ये निबंध आपको कैसा लगा ये कमेंट करके जरूर बताइए ।